II दोहा II
श्री गणेश गिरिजा सुवन मंगल मूल सुजान I
कहत अयोध्यादास तुम देहु अभय वरदान II
II चौपाई II
जय गिरिजा पति दीन दयाला I सदा करत संतन प्रतिपाला II
भाल चंद्रमा सोहत नीके I कानन कुंडल नागफनी के II
अंग गौर शिर गंग बहाये I मुण्डमाल तन छार लगाये II
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे I छवि को देखि नाग मुनि मोहे II
मैना मातु की हवै दुलारी I बाम अंग सोहत छवि न्यारी II
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी I करत सदा शत्रुन क्षयकारी II
नंदी गणेश सोहे तहँ कैसे I सागर मध्य कमल हैं जैसे II
कार्तिक श्याम और गणराऊ I या छवि को कहि जात न काऊ II
देवन जबहिं जाय पुकारा I तबही दु:ख प्रभु आप निवारा II
किया उपद्रव तारक भारी I देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी II
तुरत षडानन आप पठायउ I लवनिमेष महँ मारि गिरायऊ II
आप जलंधर असुर संहारा I सुयश तुम्हार विदित संसारा II
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई I सबहिं कृपा कर लीन बचाई II
किया तपहिं भागीरथ भारी I पूर्ण प्रतिज्ञा तासु पुरारी II
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं I सेवक स्तुति करत सदाहीं II
वेद नाम महिमा तव गाई I अकथ अनादि भेद नहिं पाई II
प्रकट उदधि मंथन में ज्वाला I जरत सुरासुर भये विहाला II
कीन्ही दया तहं करी सहाई I नीलकण्ठ तब नाम कहाई II
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा I जीत के लंक विभीषण दीन्हा II
सहस कमल में हो रहे धारी I कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी II
एक कमल प्रभु राखेउ जोई I कमल नयन पूजन चहं सोई II
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर I भये प्रसन्न दिए इच्छित वर II
जय जय जय अनंत अविनाशी I करत कृपा सब के घटवासी II
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै I भ्रमत रहौं मोहि चैन ना आवे II
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो I यहि अवसर मोहि नाथ उबारो II
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो I संकट ते मोहि आन उबारो II
मातु पिता भ्राता सब होई I संकट में पूछत नहिं कोई II
स्वामी एक है आस तुम्हारी I आय हरहु मम संकट भारी II
धन निर्धन को देत सदाहीं I जो कोई जांचे सो फल पाहीं II
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी I क्षमहु नाथ अब चूक हमारी II
शंकर हो संकट के नाशन I मंगल कारण विघ्न विनाशन II
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं I नारद शारद शीश नवावैं II
नमो नमो जय नमो शिवाय I सुर ब्रह्मादिक पार न पाय II
जो यह पाठ करे मन लाई I ता पर होत है शम्भु सहाई II
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी I पाठ करे सो पावन हारी II
पुत्रहीन कर इच्छा जोई I निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई II
पण्डित त्रयोदशी को लावे I ध्यान पूर्वक होम करावे II
त्रयोदशी व्रत करे हमेशा I ताके तन नहीं रहे कलेशा II
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे I शंकर सम्मुख पाठ सुनावे II
जन्म जन्म के पाप नसावे I अन्त धाम शिवपुर में पावे II
कहत अयोध्या आस तुम्हारी I जानि सकल दुःख हरहु हमारी II
II दोहा II
नित्त नेम कर प्रातः ही पाठ करो चालीसा I
तुम मेरी मनोकामना पूर्ण करो जगदीश II
मगसर छठि हेमन्त ॠतु संवत चौसठ जान I
स्तुति चालीसा शिवहि पूर्ण कीन कल्याण II