अहोई अष्टमी व्रत कथा एवं महत्व:

ahoi ashtami

अहोई अष्टमी का व्रत प्रमुख रूप से अपने संतान की सुख-समृद्धि तथा उसकी लंबी आयु के लिए किया जाने वाला एक व्रत है l जिसको प्रमुख रूप से माताएं अपने पुत्र-पुत्रि की अच्छी कामना के लिए करती हैं l इस व्रत को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है तथा इस दिन माताए अहोई माता की पूजा की जाती है। अहोई अष्टमी के व्रत को करवा चौथ के चार दिन पश्चात तथा दीपावली से एक सप्ताह पहले किया जाता है।

अहोई अष्टमी व्रत की पौराणिक कथा:

प्राचीन समय की बात है, एक नगर में एक साहूकार निवास करता था Iउस साहूकार के सात पुत्र तथा सात बहुए थीं। साहूकार की घरवाली बहुत ही धार्मिक तथा पुण्यात्मा थी। वह अपने बच्चों की अच्छी कामना के लिए नियम से व्रत तथा पूजा करती थी। एक दिन साहूकार की घरवाली दीवाली से पहले अपने घर को लीपने के लिए जंगल से मिट्टी लेने गई। जंगल में वह जब मिट्टी खोद रही थी, तब गलती से उसके खुरपे से एक साही के बच्चे की मौत हो गई ,अहोई माता को साही भी कहा जाता है साहूकार की पत्नी को इस घटना से बहुत दुख हुआ परंतु उसने इसको एक दुर्घटना मानकर वह वापस अपने घर को आ गई l
कुछ समय के बाद साहूकार के सातों पुत्रों की बहुओ की एक-एक करके सभी की मृत्यु हो गई l साहूकार की पत्नी को इस बात का बहुत अधिक दुख हुआ,परंतु वह समझ ही नहीं पा रही थी कि यह सब क्यों और क्या हो रहा हैlउसने अनेको विद्वानों तथा पंडितों से पूछताछ की, परंतु उसका कोई निष्कर्ष नहीं निकला I आखरी में किसी एक बुजुर्ग महिला ने उसे बताया कि यह सब उस साही के बच्चे की मृत्यु की वजह से हो रहा है I उस वृद्ध महिला उसे बताया कि अगर वह अहोई माता का पूजन व व्रत करेगी तो उसे जो पाप लगा है वह उससे छुटकारा पा सकती है तथा उसकी संतान की रक्षा भी होगीI

साहूकार की पत्नी ने उस वृद्ध महिला के बताए अनुसार कार्तिक मास की अष्टमी तिथि को अहोई माता का व्रत करा। उसने पूरा दिन व्रत किया तथा रात्रि को तारों को देखने के बाद ही अपना व्रत को खोला I व्रत में उसने सच्चे मन से अहोई माता से विनती की,की उसकी संतानों की रक्षा करें तथा उसके द्वारा किए गए पाप को क्षमा कर दे I उसके सच्चे मन से की गई प्रार्थना से अहोई माता बहुत खुश हो गईं तथा उसकी संतानें दोबारा जीवित हो उठीं। तभी से यह अहोई अष्टमी माता का व्रत अपनी संतान की अच्छी कामना तथा उसकी लंबी आयु के लिए किया जाने लगा I

अहोई माता के व्रत की पूजन विधि:

अहोई अष्टमी वाले दिन व्रत रखने वाली स्त्रियां प्रातः स्नान करके साफ सुथरे वस्त्र पहनती
हैं तथा व्रत का संकल्प करती हैं। ऐसा बताया जाता है कि इस दिन माताएं निर्जला व्रत रहती हैं, कुछ महिलाएं जल ग्रहण भी कर सकती हैं, लेकिन कुछ नहीं खाती । घर के किसी साफ सुथरे स्थान की दीवार पर या एक कागज पर अहोई माता बनाई जाती है। अहोई माता के साथ साही के बच्चे का चित्र भी बनाना आवश्यक होता है, क्योंकि इस व्रत का संबंध साही के बच्चे की कहानी से है।

पूजन के समय एक मिट्टी का बर्तन, जिसे की करवा कहा जाता है, में शुद्ध जल भरकर अहोई माता के समक्ष रखा जाता है। करवे के पास धूप, दीप, रोली, चावल तथा फूल रखकर पूजन किया जाती है। अहोई माता का पूजन करते समय अहोई व्रत की कथा सुनी जाती है तथा माता से अपनी संतान की लंबी आयु,स्वास्थ्य तथा समृद्धि की विनती की जाती है।

पूजन के पश्चात माताएं संध्या के समय तारों को देखकर ही अपने व्रत को खोलती हैं। ऐसा बताया जाता है कि कुछ स्थानों पर चांद को देखने के बाद अपना खोला जाता है I तारो को देखने के पश्चात व्रत करने वाली महिलाएं करवे के जल का सेवन करती है तथा इसके पश्चात भोजन ग्रहण करती हैं I

अहोई अष्टमी माता के व्रत का महत्त्व:

अहोई अष्टमी का व्रत माताओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस व्रत को करने वाली महिलाएं अपनी संतानों की सुख-समृद्धि, लंबी आयु तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह व्रत रखती हैं। अहोई अष्टमी का व्रत न केवल जो संतान है उसके लिए किया जाता है, अपितु संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाली महिलाएं भी इस व्रत को श्रद्धा भाव से करती हैं। अहोई माता के व्रत को करने से संतान के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा अहोई माता की कृपा से संतान की प्राप्ति होती है।

व्रत के समय माताओं का संकल्प तथा अहोई माता की पूजा में उनकी पूरी आस्था होती है Iयह अहोई अष्टमी का व्रत माताओं के मातृत्व तथा उनके संतानों के लिए प्यार तथा समर्पण है। ऐसा भी मानता है कि यह व्रत एक धार्मिक तथा सामाजिक संस्कार का हिस्सा भी है, जोकि परिवार तथा समाज में आपसी प्यार तथा सद्भावना को बढ़ाता है।

अहोई अष्टमी माता के व्रत की धार्मिक मान्यता ये है कि अहोई माता उन सभी महिलाओं की सुरक्षा करती हैं, जो सच्चे हृदय से उनकी पूजन करती हैं तथा अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए व्रत रखती हैं। अहोई माता का यह व्रत संतान की प्राप्ति तथा उनकी रक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्रत में से एक हैI अहोई माता को संतान की सुरक्षा तथा उनके अच्छे भविष्य की देवी मां के रूप में पूजन किया जाता है।

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