आंवला नवमी का यह पर्व भारतीय संस्कृति तथा हिंदू धर्म में एक प्रमुख स्थान रखता है। इस को अक्षय नवमी या कूष्मांड नवमी भी कहा जाता हैं तथा इस पर्व को कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन को प्रमुख रूप से आंवले के वृक्ष कि पूजा की जाती है तथा उसके नीचे बैठकर भोजन करना शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन विष्णु भगवान, माता लक्ष्मी तथा देवी पार्वती ने आंवले के वृक्ष में वास किया था, इसी कारण यह वृक्ष बहुत पवित्र हो गया।
आंवला नवमी कथा का महत्व:
कथा के अनुसार एक समय मे भगवान विष्णु पृथ्वी पर अवतरित हुए तथा अनेक लोकों की यात्रा करते हुए मानव जीवन में होने वाले दुखों को देखा। उन्होंने देखा कि मनुष्य अपने कर्मों मे उलझा हुआ है तथा उनके जीवन में सुख तथा संतोष का पूर्णतया अभाव है। ऐसा देख कर विष्णु भगवान ने आंवले के पेड़ में वास करने का निश्चय किया ताकि मनुष्यों को एक ऐसा पेड़ मिल सके जिसके होने से मनुष्य अपने जीवन को शुद्ध तथा शांतिपूर्ण बना सकें। उन्होंने ऐसा बतलाया की, कि जो मनुष्य आंवले के वृक्ष का पूजन करेंगे तथा उसके नीचे भोजन करेंगे, उनके समस्त दुख नष्ट होंगे तथा उनके घर में समृद्धि तथा सुख और शांति का वास होगा।
आंवला नवमी की कथा इस प्रकार हैं:-
पौराणिक कथा के अनुसार, एक राजा ने बहुत पुण्य कमाए तथा विष्णु भगवान का पूर्ण भक्त बना। राजा ने ऐसा संकल्प किया कि वह विष्णु भगवान के चरणों में स्वयं को समर्पित कर देगा तथा नियम से भगवान विष्णु की आराधना करेगा। एक दिन विष्णु भगवान ने राजा तो साक्षात दर्शन दिए और राजा से कहा कि तुम वरदान मांगो। राजा ने बहुत ही विनम्रता से भगवान विष्णु से कहा कि हे भगवान आप हमेशा मेरे राज्य में रहे।
विष्णु भगवान ने राजा से कहा कि वह आंवले की वृक्ष का पूजन करें तथा उसके नीचे बैठकर भोजन ग्रहण करें । भगवान विष्णु ने ऐसा भी कहा कि आवले के वृक्ष की छांव में बैठकर भोजन करने से राजा को जीवन मे सुख तथा समृद्धि प्राप्त होगी। राजा ने भगवान विष्णु के बताए अनुसार वैसा ही किया तथा राज्य में खुशहाली का वास हुआ। तभी से आंवला नवमी का पर्व मनाने की परंपरा आरंभ हो गई।
एक अन्य कथा में ,ऐसा भी बताया गया है कि एक समय में देवी पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि उन्हें कौन सा वृक्ष सबसे अधिक प्रिय हैं ।भगवान शिव ने माता पार्वती से बताया कि आंवले का वृक्ष उन्हें बहुत अधिक प्रिय है क्योंकि यह वृक्ष अत्यधिक स्वास्थ्यवर्धक होता है तथा इसमें बहुत अधिक गुण होते हैं। भगवान शिव ने ऐसा भी बताया कि जो भी मनुष्य आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करेगा, उस मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होगी।
आंवला नवमी की दूसरी कथा इस प्रकार है:
एक समय की बात है कि देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर घूम रही थीं। माँ ने देखा कि पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्य अपने कर्मों मे लगे हुए हैं तथा वो किसी भी प्रकार के धार्मिक कर्म या फिर पुण्य कार्य नहीं करते। ऐसा देखकर मां लक्ष्मी ने पृथ्वी पर आंवले के वृक्ष में अपना वास बना लिया। ऐसा बताया जाता है की मां लक्ष्मी ने ऐसा बताया कि जो भी मनुष्य आंवले के पेड़ की पूजन करेगा, उस मनुष्य के घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं रहेगी। इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन करना बहुत विशेष होता है।
आँवले के वृक्ष की पूजन विधि तथा उसका महत्त्व:-
ऐसा बताया जाता है कि आंवला नवमी के दिन महिलाएँ व्रत रखती हैं और आंवले के वृक्ष का पूजन करती हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु और परिवार की सुख तथा समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। वे आंवले के पेड़ को गंगाजल, दूध तथा फूलों से स्नान कराकर पूजन करती हैं। इसके बाद मे पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करती है।
आंवला नवमी के पूजन में पंचामृत, फल, मिठाई, नारियल, सिंदूर, चूड़ी, वस्त्र तथा फूलों का प्रयोग किया जाता है। आंवले के वृक्ष के चारों तरफ दीप प्रज्वलित करके उसकी आरती की जाती है। इस दिन सुहागिन महिलाएँ आंवले के पेड के नीचे बैठकर कहानी सुनती हैं तथा अपने पति के साथ मे भोजन करती हैं।