करवा चौथ व्रत कथा

karva chauth vrat katha

करवा चौथ का व्रत भारतीय महिलाओं के लिए प्रमुख महत्व रखता है। यह व्रत आमतौर पर उत्तर भारत में मनाया जाता हैI यह व्रत सुहागिन महिलाए अपने पति की लंबी आयु,सुख-समृद्धि, तथा जीवन में शांति की कामना के लिए रखती है I करवा चौथ का अर्थ बताया जाता है ,करवा यानी मिट्टी का बर्तन तथा चौथ यानी चतुर्थी तिथि I इस व्रत को कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है I करवा चौथ के व्रत का भारतीय संस्कृति तथा परंपरा मे एक अलग ही उदाहरण है, जोकि पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते को मजबूत करता हैI

करवा चौथ व्रत की प्रमुख तैयारी:

इस व्रत मैं महिलाएं विशेष तैयारी करती हैं I वे नए वस्त्र पहनती हैं, हाथों में मेहंदी लगा ती है तथा सोलह श्रृंगार करती हैं। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले सारगी खाती है जो उनकी सास द्वारा दिया जाता है। इस सरगी में मिठाइयाँ, फल, तथा सूखे मेवा होते हैं। सारगी खाने के पश्चात महिलाए पूरे दिन व्रत रखती हैं इसमें व्रत करने वाली महिलाएं जल भी ग्रहण नहीं करती l करवा चौथ के व्रत का पारायण सूर्यास्त के बाद चांद को देखने के बाद ही किया जाता हैl

करवा चौथ के व्रत की अनेकों कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख महाभारत काल की कथा है। इसके अतिरिक्त एक दूसरी लोकप्रिय कथा वीरवती नाम की महिला की है, जिसका अपने पति के लिए बहुत प्रेम था तथा इसके लिए वह बहुत अधिक प्रसिद्ध थीl

वीरवती नामक महिला की पौराणिक कथा:

पुराने समय में वीरवती नाम की एक अत्यंत सुंदर था धर्मपरायण महिला थी, जिसका शादी एक महान राजा से हुई थीं। वह महिला अपने सात भाइयों की इकलौती बहन थी। विवाह के पश्चात प्रथम करवा चौथ पर उसने निर्जला व्रत रखा रखाl ऐसा कठोर व्रत करने के कारण वह बहुत दुर्बल हो गई तथा भूख-प्यास से उसका बुरा हाल हो गया। उसे ऐसी हालत में देखकर उसके सातों भाई बहुत अधिक परेशान हो गए lवे अपनी बहन से बहुत अधिक प्रेम करते थे तथा अपनी बहन को इस तरह कष्ट होते नहीं देख सकते थे l

वीरवती के भाइयों ने वीरवती को भोजन करने के लिए मनाने का बहुत प्रयास करना चाहा, परंतु वीरवती ने कहा कि मैं बिना चांद को देखे भोजन ग्रहण नहीं करूंगी lउसके भाइयों ने एक योजना सोची l
उन भाइयों ने एक पेड़ के पीछे एक दर्पण रख दिया तथा चांद को कृत्रिम रूप से दिखाते हुए वीरवती को यह विश्वास दिलाया कि चांद निकल गया है ऐसा करने पर वीरवती को लगा कि शायद चांद निकल गया है और उसने उसे चांद को देखकर अपना व्रत खोल लिया , परंतु जैसे ही उसने भोजन किया, उसे तुरंत ही अशुभ संकेत मिलने लगे। उसे पता हुआ कि उसके पति की मृत्यु हो गई है। इस दुखद समाचार को सुनकर वीरवती बहुत अधिक दुखी हुई तथा उसने भगवान से अपने पति के लिए विनती की । वीरवती की भक्ति तथा उसका पति के प्रति प्रेम को देखकर देवी मां प्रभावित हो गई lतब देवी मां ने उसे कहा कि उसने अपने व्रत को पूरा नहीं किया था l मां ने उसे पूरे नियम के साथ चौथ के व्रत को करने के बारे में बोला l इसके पश्चात वीरवती ने दोबारा करवा चौथ का व्रत पूरी भक्ति के साथ किया l देवी मां उसकी भक्ति से प्रसन्न हो गई तथा उसके पति को जीवन दान दे दिया l
करवा चौथ के व्रत की महिमा को यह कथा दर्शाती है यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि पति-पत्नी के बीच का बंधन अत्यधिक अटूट होता हैl इस व्रत के बारे में ऐसा बताया जाता है कि यह व्रत केवल भौतिक दृष्टिकोण से नहीं अपितु आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण हैl

करवा चौथ की महाभारत से संबंधित पौराणिक कथा:

महाभारत काल में भी करवा चौथ से जुड़ी एक पौराणिक कथा बहुत अधिक प्रसिद्ध है l द्रोपती जो कि पांडवों की पत्नी थी उसने भी करवा चौथ का व्रत रखा था l एक समय की बात है कि अर्जुन तपस्या करने नीलगिरि पर्वत पर गए तथा और जो पांडव थे वो संकट में फंसे हुए थे l उसे समय पर द्रौपदी को श्रीकृष्ण की याद आई तथा उन्होंने श्रीकृष्ण से मदद करने की विनती की। श्रीकृष्ण ने उन्हें कहां की द्रौपदी तुम करवा चौथ का व्रत रखो तथा कहा कि इस करवा चौथ के व्रत को करने से जो संकट आया है वह अवश्य ही दूर होगा l श्री कृष्ण के बताए अनुसार द्रोपती ने व्रत रखा इस व्रत के प्रभाव से पांडवों के संकट दूर हुए l इस कथा में भी करवा चौथ के महत्व तथा उसकी शक्ति को दर्शाया जाता है l

करवा की पौराणिक कथा:

करवा नाम की एक पतिव्रता नारी थी, जोकि अपने पति के लिए अत्यधिक समर्पित थी। उसका पति एक दिन नदी में स्नान करने के लिए गया था वह नदी में स्नान कर रहा था कि उसी समय एक मगरमच्छ ने उसको पकड़ लिया l करवा ने उस मगरमच्छ को पकड़कर एक धागे से बांध दिया तथा यमराज से प्रार्थना की, कि वह उस मगरमच्छ के प्राण ले ले lयमराज ने करवा की प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया , तब करवा ने उनसे कहा कि मैं तुम्हें इस बात पर श्राप दे दूंगी lकरवा के पतिव्रता धर्म से प्रभावित होकर यमराज ने मगरमच्छ को मार डाला तथा उसके पति को जीवनदान दे दिया। ऐसा बताया जाता है कि तभी से करवा चौथ के व्रत का नामकरण हुआ तथा इसे इस व्रत को पतिव्रता स्त्रियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है।

करवा चौथ के व्रत की पूजन विधि:

करवा चौथ के दिन व्रत करने वाली महिलाएं सारा दिन निर्जल व्रत रहती हैं तथा शाम को की चौथ माता का पूजन करते हैं l पूजन की विधि इस प्रकार है:

शाम के समय की तैयारी: व्रत करने वाली महिलाएं शाम के समय चांद के उदय से पहले करवा चौथ की पूजा की तैयारी करती हैं। वे करवा जो की एक मिट्टी का बर्तन होता है उसमें जल भरती हैं, और फल, मिठाई तथा धूप-दीप भी रखती है l

करवा चौथ की कथा को सुनना: पूजा के समय व्रत करने वाली महिलाएं करवा चौथ की कथा सुनती हैं। इस व्रत में कथा सुनने पर ही व्रत को माना जाता है अक्सर महिलाएं एक साथ बैठकर चौथ माता की कथा सुनती है l

चंद्रमा को देखना तथा अर्घ्य देना: चंद्रमा के दर्शन के पश्चात महिलाएं उसे अर्घ्य देती हैं यानी चंद्रमा को जल चढ़ाती हैं तथा चांद से अपने पति की लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं। चंद्रमा को जल सिखाते हुए अब दिया जाता है l

पति द्वारा व्रत खुलवाना: चंद्रमा की पूजा के पश्चात पति अपनी पत्नी को जल पिलाकर और मिठाई खिलाकर व्रत खुलवाते हैं। इस प्रक्रिया को पति-पत्नी के बीच प्रेम तथा समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

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