धनतेरस का त्यौहार दीपावली से ठीक दो दिन पहले कार्तिक मास की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस दिन को हम धन त्रयोदशी या धन्वंतरि त्रयोदशी के नाम से भी जानते हैं। हिंदू धर्म के अन्दर धनतेरस पर्व के दिन माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा होती है। धनतेरस का त्यौहार मुख्य रूप से धन, स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करने वाला है।
धनतेरस की पौराणिक कथा:
धनतेरस की कथा के अनुसार, प्राचीन समय में जब देवता और असुरों के बीच समुद्र मंथन हो रहा था, तब सभी का उद्देश्य अमृत प्राप्त करना था, जिससे सभी अमरत्व को प्राप्त कर सके। समुद्र मंथन करने के दौरान कई प्रकार की मूल्यवान चीजें प्राप्त हुईं थी जिनमें विष, रत्न, कामधेनु गाय, कल्पवृक्ष, लक्ष्मी देवी और धन्वंतरि भी शामिल थे।
समुद्र मंथन से जब भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए, तो उन्होंने अपने हाथ में एक अमृत का कलश लिया हुआ था। अमृत का कलश हाथों में लेकर भगवान धन्वंतरि का आना दर्शाता है कि स्वस्थ और लंबी आयु प्राप्त करने के लिए हमें उचित आहार और अच्छी जीवनशैली एवं निरोग रहना होता है। धनतेरस को स्वास्थ्य एवं आरोग्य का भी प्रतीक भी माना जाता है। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद के देवता माना जाता है और इस दिन इनकी पूजा की जाती है। आयुर्वेद में धन्वंतरि का विशेष महत्व है, और उन्हें स्वास्थ्य एवं चिकित्सा का प्रवर्तक माना जाता है।
धनतेरस की दूसरी कथा:
धनतेरस से जुड़ी दूसरी प्रसिद्ध कथा इस प्रकार है कि राजा हेम का एक पुत्र था जिसकी कुंडली में यह लिखा हुआ था कि उसके विवाह पश्चात चौथे दिन उसकी मृत्यु हो जाएगी। कुंडली में यह देखकर राजा हेम बहुत उदास हो गए। विवाह के बाद, जब चौथा दिन आया, तो उसकी पत्नी ने समझदारी दिखाई और अपने पति को बचाने के लिए एक उपाय सोचा।
उसने अपने घर के दरवाजे पर हर जगह सोने और चांदी के आभूषण, रत्न, जेवरात और अन्य प्रकार के सभी गहने रख दिए और अपने घर पर और घर के चारों तरफ दीये ही दिये जला दिये। रात्रि समय जब यमराज उनके घर उसके पति के प्राण हरने के लिए आए तो उन्होंने दरवाजे पर रखे आभूषण और चारों तरफ जलते हुए दीयों का प्रकाश देखकर बहुत आश्चर्य हुआ। उस रात वे उस चमक-धमक में इतना मोहित हो गए कि वे उस राजकुमार के पास नहीं जा सके और पूरी रात बाहर बैठे बैठे इन्हें ही देखते रहे। इस प्रकार राजकुमार की जान बच गई। इस घटना के कारण धनतेरस पर दीप जलाने और सोने-चांदी खरीदने की परंपरा शुरू हुई।
लक्ष्मी पूजा का महत्व:
धनतेरस पर देवी लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है क्योंकि इस दिन यह माना जाता है की देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। इस दिन जो भी देवी लक्ष्मी का ध्यान एवं पूजन करते हैं, उनके घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती है और उनका आशीर्वाद सदैव घर पर बना रहता है। देवी लक्ष्मी को धन, समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी माना जाता है। धनतेरस की रात लक्ष्मी पूजा के लिए शुभ मानी जाती है इस दिन देवी लक्ष्मी का ध्यानपूर्वक पूजन करते हैं, उनके घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती है। धनतेरस के दिन नए बर्तन, सोना या चांदी खरीदने की भी परंपरा है क्योंकि इसे शुभ माना जाता है।
पूजा विधि:
धनतेरस पर पूजा करने के लिए घर की सफाई की जाती है और घर को सजाया जाता है। इस दिन घर के मुख्य दरवाजे पर दीप जलाए जाते हैं, और माता लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है। इस दिन धन और समृद्धि के देव कुबेर की भी पूजा की जाती है। भगवान धन्वंतरि, देवी लक्ष्मी और कुबेर की एक साथ पूजा की जाती है, क्योंकि इससे स्वास्थ्य, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
धनतेरस पर शाम के समय घर के बाहर मुख्य द्वार पर दीपक जलाए जाते हैं। घर के अंदर लक्ष्मी माता और भगवान कुबेर की मूर्ति या तस्वीर पर पुष्प, गंध, धूप और दीपक अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद निम्नलिखित मंत्रों का जाप किया जाता है:
लक्ष्मी देवी मंत्र:
“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नमः”
कुबेर देवता मंत्र:
“ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा”
भगवान धन्वंतरि का पूजन करते समय यह मंत्र जपें:
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वंतरये अमृतकलश हस्ताय सर्वामय विनाशाय त्रैलोक्यनाथाय श्री महाविष्णवे नमः”
धनतेरस त्यौहार का महत्व:
धनतेरस के दिन नए बर्तन, सोने या चांदी के आभूषण खरीदने की परंपरा है। इसलिए इस दिन लोग कुछ न कुछ अवश्य खरीदते हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे घर में सुख, समृद्धि और धन का वास होता है। इस दिन व्यापारी और दुकानदार भी अपने दुकान की साफ-सफाई करके लक्ष्मी माता की पूजा करते हैं। इससे वे अपने व्यवसाय में वृद्धि और लाभ की कामना करते हैं।
धनतेरस का पर्व केवल धन और समृद्धि तक सीमित नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य और लंबी आयु की कामना का भी पर्व है। इसे पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाने की परंपरा है और यह पर्व लोगों के जीवन में खुशी और संतोष का संचार करता है।