हे मेरे प्रभु करुणा सिन्धु भजन लिरिक्स

He mere Prabhu karuna sindhu

हे मेरे प्रभु करुणा सिन्धु करुणा कीजिये ।
हूँ अधम आधीन अशरण अब शरण में लिजिये ॥

खा रहा गोते हूँ मैं भवसिन्धु के मंझधार में ।
आसरा है दूसरा कोई न अब संसार में ॥

मुझमे है जपतप न साधन और नहिं कुछ ज्ञान है ।
निर्लज्जता है एक बाकी और बस अभिमान है ॥

पाप बोझ से लदी नैया भंवर में आ रही ।
नाथ दौड़ो, अब बचाओ जल्द डूबी जा रही ॥

आप भी यदि छोड़ देगें, फिर कहाँ जाऊंगा मैं ।
जन्म दुःख से नाव कैसे पार कर पाऊँगा मैं ॥

सब जगह ‘मंजुल’ भटक कर ली शरण अब आपकी ।
पार करना या न करना दोनों है मर्जी आपकी ॥

तू दयालु दीन हौं तू दानी, हौं भिखारी ।
हौं प्रसिद्ध पात की, तू पाप पुञ्ज हारी ॥

नाथ तू अनाथ को अनाथ कौन मोसो ।
मो समान आरत नहिं, आरति हर तोंसे ॥

ब्रह्मा तू, हौं जीव, तू ठाकुर, हौं चेरो।
तात मात गुरु सखा, तू सब विधि हितु मेरो ॥

तोहि मोहि नाते अनेक, मोनिये जो भावै।
ज्यों त्यों ‘तुलसी’ कृपालु चरण सरण पावै ॥


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