जीवित्पुत्रिका व्रत
हिंदू धर्म में जितिया व्रत का बहुत महत्व है। इस व्रत को माताओं द्वारा अपनी संतान की दीर्घायु, समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए करने का महत्व बताया जाता है। यह बताया जाता है कि जितिया व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता हैl इस व्रत को विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के कुछ हिस्सों में अधिक प्रचलित माना जाता है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को इस व्रत को किया जाता है।
जितिया व्रत में महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं, यानी पूरा दिन बिना पानी और अन्न ग्रहण किए व्रत रखती हैं।इस व्रत को बहुत कठिन व्रत माना जाता है, क्योंकि इसमें पूरी श्रद्धा और भक्ति से भगवान जीवित्पुत्रिका की पूजा की जाती है। व्रत की समाप्ति पर ही महिलाएं अन्न-जल ग्रहण करती हैं। इस व्रत की कथा सुनने और सुनाने का भी विशेष महत्व है। इस व्रत को तीन दिनों तक करा जाता है और इसे ‘नहाय-खाय’, ‘खरजित’ और ‘पारण’ के नाम से जाना जाता है।
जितिया व्रत का विशेष महत्व इस प्रकार हैं:
जितिया व्रत का विशेष महत्व बताया जाता हैl इस व्रत को रखने वाली महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए भगवान से विनती करती हैं। ऐसा माना जाता है कि जितिया व्रत करने से संतान पर आने वाले हर प्रकार के संकटों का नाश होता है और वह आयुपर्यंत निरोगी रहती है। इस व्रत का नाम ‘जितिया’ इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें भगवान जीवित्पुत्रिका की पूजा की जाती है, जिन्हें भक्तो द्वारा “जीवमाता” के रूप में भी जाना जाता है।
व्रत के महत्व को इस दृष्टि से भी देखा जा सकता है कि माताओं द्वारा की जाने वाली तपस्या और संकल्प संतान के जीवन पर बहुत प्रभाव डालता है। इस व्रत को माताओं की निःस्वार्थ भक्ति के रूप में भी माना जाता है। यह व्रत प्रत्येक वर्ष विशेष रूप से आश्विन मास की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, और इस व्रत को करना महिलाओं के लिए यह अपने संतान के कल्याण के लिए बहुत महत्वपूर्ण काम होता है।
जितिया व्रत कथा इस प्रकार हैं:
व्रत की शुरुआत कैसे हुई और इसकी कथा क्या है, इसके बारे में कई प्राचीन कथाएं प्रचलित हैं। जितिया व्रत की प्रमुख कथा इस प्रकार है:
प्राचीन समय में एक राजा थे, उनका नाम राजा शालिवाहन था। वे बहुत ही पराक्रमी और धार्मिक प्रवृत्ति के राजा थे। उनके राज्य के समीप एक बडा जंगल था, जिसमें अनेक प्रकार के वन्य जीव रहते थे। उसी जंगल में एक विचित्र पक्षी भी रहता था, उसे पक्षी का नाम जीवितवाहन था। जीवितवाहन को पक्षियों का राजा कहा जाता था, और वह अपनी प्रजा का बहुत खयाल रखता था।
एक समय जंगल में कुछ राक्षस आ गए और उन्होंने वहां निवास करने वाले ऋषि-मुनियों को बहुत ज्यादा परेशान करना आरंभ कर दिया। राक्षसों के अत्याचार से परेशान ऋषि-मुनियों ने ईश्वर से प्रार्थना की कि वे उन्हें इन राक्षसों से मुक्ति दिलाए। विष्णु भगवान ने उन ऋषि मुनियों की प्रार्थना सुनकर जीवितवाहन को आदेश दिया कि वह जाकर राक्षसों से ऋषियों की रक्षा करें। जीवितवाहन ने विष्णु भगवान के इस आदेश का पालन करते हुई अपने पराक्रम से उन राक्षसों को मार डाला।
इस वीरता से खुश होकर विष्णु भगवान ने जीवितवाहन को अमरता का वरदान दिया और भगवान विष्णु ने कहा कि जो भी स्त्री तुम्हारी पूजा कर व्रत करेगी, उस स्त्री की संतान की लंबी आयु होगी। उस समय से ही जीवित्पुत्रिका व्रत का प्रचलन शुरू हों गया। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि माताओं द्वारा किए गए इस व्रत से उनकी संतान की सभी विपत्तियाँ दूर होती हैं और वह दीर्घायु होती है।
जितिया व्रत से जुड़ी दूसरी प्राचीन कथा:
एक और प्राचीन कथा के अनुसार, एक बार राजा युधिष्ठिर ने गुरु वसिष्ठ से पूछा,गुरुदेव कृपया कर मुझे ऐसा कोई व्रत बताइए जिसके करने से मेरी संतान को लंबी आयु और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद मिले। गुर वसिष्ठ ने कहा, हे राजन जितिया व्रत बडा ही शुभ और कल्याणकारी व्रत है। इसको करने से आपकी संतान निश्चित ही दीर्घायु होगी l
गुरु वसिष्ठ ने राजा युधिष्ठिर से व्रत की महिमा बताते हुए यह कहा, प्राचीन समय में एक राजा थे जिनका नाम जिमूतवाहन था। वे बडे ही धर्मपरायण और प्रजा-पालक राजा थे। एक समय उनके राज्य में एक अद्भुत घटना घटित हुई l राजा ने देखा कि उनके राज्य के कुछ हिस्सों में बार-बार सूखा पड़ रहा है। राजा ने अपने धर्मगुरु से परामर्श किया, तो उन्हें यह बताया गया कि यह सूखा एक शराप के कारण हो रहा है। राजा जिमूतवाहन ने विष्णु भगवान की तपस्या की और विष्णु भगवान से आशीर्वाद प्राप्त कर इस शराप से मुक्ति प्राप्त की। इस कारण उनके राज्य में दुबारा से सुख-शांति और समृद्धि लौट आई l
राजा जिमूतवाहन के तपस्या से प्रेरित होकर राज्य की स्त्रियों ने राजा की पूजा करने का निश्चय किया और तभी से जितिया व्रत का प्रचलन शुरू हुआ। इस व्रत को विशेष रूप से संतान के कल्याण के लिए किया जाता है।
जितिया व्रत की विधि इस प्रकार है:
जितिया व्रत को तीन दिनों तक मनाया जाता है। इस व्रत के तीन दिन मुख्य होते हैं: नहाय-खाय, खरजित, और पारणl ऐसी मान्यता है कि इन तीनों दिनों का अपना-अपना महत्व और व्रत की विधि होती है।
- प्रथम दिन होता है नहाय-खाय के रुप में:
इस व्रत के प्रथम दिन को नहाय-खाय कहा जाता है। प्रथम दिन व्रत करने वाली महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और स्वच्छ वस्त्र पहनती हैं। इसके बाद इस व्रत का संकल्प लेकर व्रत को प्रारंभ करती है l इस व्रत में महिलाएं सात्विक भोजन करती हैं जिसमें प्रमुख रूप से चना,चावल , कद्दू की सब्जी बनाई जाती है। यह सात्विक भोजन प्रमुख रूप से पौष्टिक होता है ताकि अगले दिन के निर्जला व्रत के लिए शरीर को स्वस्थ रखा जाए l
- द्वितीय दिन व्रत खरजित के रूप में:
इस व्रत के दूसरे दिन को खरजित कहा जाता है। इस दिन को महत्वपूर्ण और कठिन बताया जाता है l इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। यानी व्रत करने वाली महिलाएं पूरे दिन बिना अन्न और जल ग्रहण किए इस व्रत को करती है। व्रत का यह पूरा दिन तपस्या और भक्ति के साथ व्यतीत किया जाता है। व्रत करने वाली महिलाएं पूरा दिन भगवान जीवित्पुत्रिका की पूजा अर्चना करती हैं और अपनी संतान की दीर्घायु के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।
रात्रि को जितिया व्रत कथा सुनने का भी प्रमुख महत्व बताया जाता है। सभी महिलाएं इकट्ठा होकर कथा को सुनती हैं और भगवान की महिमा का गुणगान करती हैंl इस दिन इस पूजा में हल्दी, चावल, फूल , धूप-दीप, और मिठाइयों का प्रयोग किया जाता है। पूजा के समय व्रत की कथा भी सुनी जाती है और भगवान से विनती की जाती है कि उनकी संतान दीर्घायु और स्वस्थ रहें।
- तृतीय दिन व्रत पारण के रुप में:
तृतीय दिन को व्रत का पारण कहा जाता है, जो कि व्रत का समापन दिन होता है। इस दिन प्रातः व्रत करने वाली महिलाएं स्नान करके भगवान जीवित्पुत्रिका की पूजा अर्चना करती हैं। पूजा करने के बाद व्रत का पारण किया जाता हैl व्रत के पारण में अन्न और जल ग्रहण किया जाता है। व्रत के पारण वाले दिन व्रत करने वाली महिलाएं भगवान से आशीर्वाद के रूप में अपनी संतान की दीर्घायु और समृद्धि की प्रार्थना करती है l व्रत पारण करते समय महिलाएं अपने परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करती हैं l