नवरात्रि सातवां दिन माँ कालरात्रि कथा, मंत्र एवं पूजन विधि

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माँ कालरात्रि के रूप को मां दुर्गा के नौ रूपों में से सातवें रूप में जाना जाता हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि पर्व के सातवें दिन की जाती है। माँ कालरात्रि का स्वरूप बहुत ज्यादा उग्र और भयानक रूप लिए हुए है, माँ कालरात्रि का रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि के नाम से जाना जाता है, माता अपने भक्तों के लिए शुभफल देने वाली और सबका कल्याण करने वाली मानी जाती हैं। इसलिए इन्हें शुम्भ्कारी भी कहा जाता है, उनका यह रूप अज्ञानता, बुराई, और भय को नष्ट करने वाला है।

माँ कालरात्रि की पौराणिक कथा:

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, दैत्यों और राक्षसों ने तीनों लोकों में बहुत ज्यादा आतंक मचा रखा था, उन राक्षसों का अंत करने के लिए ही मां कालरात्रि का जन्म हुआ था। दानव रक्तबीज ने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। राक्षस रक्तबीज में एक विशेष गुण था कि जब भी उसके रक्त की एक भी बूंद धरती पर गिरती थी, तो उससे एक नया रूप राक्षस के रूप में उत्पन्न हो जाता था। इसी वजह से रक्तबीज का परास्त करना असंभव लगने लगा था।

रक्तबीज का अंत करने के लिए सभी देवताओं ने मिलकर प्रार्थना की इस पर माँ दुर्गा ने अपने उग्र रूप माँ कालरात्रि के रूप में अपनी शक्ति से रक्तबीज को मृत्यु के घाट उतार दिया। माँ कालरात्रि ने दानव रक्तबीज के रक्त को जमीन पर गिरने ही नहीं दिया माँ ने रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही ग्रहण कर लिया ताकि नए राक्षस के रूप में रक्तबीज उत्पन्न न हो सकें। माँ कालरात्रि ने अपनी दिव्य शक्ति का प्रयोग कर सभी राक्षसों का सर्वनाश किया और देवताओं को उनके भय से मुक्ति दिलाई।

माँ कालरात्रि का स्वरूप:

माँ कालरात्रि का स्वरूप बहुत ज्यादा उग्र और भयानक रूप लिए हुए है। उनका रंग काला है और उनके सिर के बाल बिखरे हुए हैं। उनके तीन नेत्र हैं, ये तीनो नेत्र ब्रह्मांड के तीनों लोकों को दर्शाते हैं। उनके गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है, उनकी चार भुजाएँ हैं, जिनमें से एक हाथ में खड्ग (तलवार) और दूसरे हाथ में लौह शस्त्र है। तीसरा हाथ अभय मुद्रा में है, जो भक्तों को अभय का आशीर्वाद देता है, और चौथा हाथ वरद मुद्रा में है, जो भक्तों को वरदान प्रदान करता है। माँ कालरात्रि का वाहन गधा है, जो विनम्रता और साहस का प्रतीक है।

माँ का यह उग्र रूप बुराई का अंत करने वाला है, लेकिन उनके भक्तों के लिए वे हमेशा शुभ फलदायिनी हैं। इसीलिए उन्हें “शुभंकारी” भी कहा जाता है।

माँ कालरात्रि के मंत्र जाप:

माँ कालरात्रि की पूजा में निम्न मंत्रों का जाप करना अत्यंत फलदायी माना जाता है:

ध्यान मंत्र:
बीज मंत्र:
स्तोत्र मंत्र:

इन मंत्रों का जाप करने से सभी भक्तों को माँ कालरात्रि की कृपा प्राप्त होती है और भक्त के जीवन में सभी प्रकार के भय और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।

माँ कालरात्रि की पूजा विधि:

माँ कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। इस दिन माँ की पूजा विधि बहुत ही महत्वपूर्ण होती है, जिससे भक्तों को उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।
प्रातः ब्रम्हमुहर्त में उठकर स्नान करे और स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा के स्थान को शुद्ध करें और माँ दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर के सामने काले या नीले कपड़े का आसन बिछाकर बैठें। आसन पर बैठकर ध्यान को एकाग्र करें और माँ कालरात्रि का ध्यान करें। पूजा स्थल पर एक तांबे या पीतल के कलश की स्थापना करें। कलश में जल, सुपारी, सिक्का, हल्दी, कुमकुम और अक्षत डालें। यह कलश माँ के प्रतीक रूप में स्थापित किया जाता है। तिल के तेल का दीपक प्रज्वलित करें और फिर दोनों हाथ जोड़कर माँ कालरात्रि की प्रार्थना करें और उन्हें अपनी पूजा में उपस्थित होने के लिए प्रार्थना करें। माता के ध्यान मंत्र का उच्चारण करें। माँ को विशेष रूप से लाल और नीले फूल माँ कालरात्रि को प्रिय होते हैं। पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर) से माँ को स्नान कराएं और प्रसाद में मिठाई, फल, और नारियल शामिल करें।

माँ कालरात्रि के मंत्रों का जप करें। “ॐ देवी कालरात्र्यै नमः” मंत्र का 108 बार जाप करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

माँ कालरात्रि की आरती करें। आरती के दौरान घंटी बजाएं और माँ की स्तुति करें। आरती के बाद प्रसाद को सभी भक्तों में वितरित करें। अंत में माँ कालरात्रि से अपने द्वारा किए गए किसी भी भूल-चूक के लिए क्षमा याचना करें और उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना करें।

माँ कालरात्रि की पूजा का महत्व:

माँ कालरात्रि की पूजा से भक्तजनों को भय, रोग, और नकारात्मक ऊर्जा से हमेशा के लिए मुक्ति मिलती है। माँ का यह रूप उनके भक्तों को साहस और आत्मविश्वास प्रदान करता है। माँ कालरात्रि की कृपा से साधक के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का आगमन होता है। माँ कालरात्रि की उपासना से मन और आत्मा शुद्ध होती है और साधक को दिव्य अनुभूति होती है। उनकी कृपा से साधक के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे जीवन की सभी चुनौतियों का सामना करने में सहायता मिलती है। माँ कालरात्रि के उग्र रूप के पीछे उनका मातृत्व प्रेम छिपा है, जो अपने भक्तों के सभी कष्टों का नाश करता है। माँ कालरात्रि अपने भक्तों को भयमुक्त रहने का आशीर्वाद देती हैं। उनकी पूजा से साधक के मन में आत्मविश्वास और साहस का संचार होता है। वे अपने भक्तों को हर प्रकार के दुख और कष्ट से मुक्त करती हैं और जीवन में सफलता के मार्ग को प्रशस्त करती हैं। माँ की कृपा से साधक को मानसिक और शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है, जिससे वह कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना कर सकता है।

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