आश्विन मास की अमावस्या जिसे हम श्रद्धा या पितृ अमावस्या के रूप में जानते हैं l यह तिथि हिंदू धर्म में एक विशेष तिथि मानी जाती है। इस दिन पितरों का तर्पण और श्राद्ध करने का समय माना बताया जाता हैI ऐसा बताया जाता है कि इस अमावस्या का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है I इस कथा का विवरण हिंदू धर्म ग्रंथो और पुराणों में विश्लेषित मिलता है।
पितृ पक्ष तथा आश्विन मास की अमावस्या का विशेष महत्व:
इस अमावस्या को चंद्र मास के उस दिन के रूप में कहा जाता है जब आसमान में चंद्रमा दिखाई नहीं देता। इस अमावस्या की रात पूर्णतया अंधकारमय होती है तथा धार्मिक दृष्टिकोण से इस रात्रि को तामसिक शक्तियों के प्रभाव का समय भी माना जाता है। हमारे हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि जब व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसकी आत्मा पितृ लोक में विचरण करती है, यह स्थान वह है जहाँ पूर्वजों की आत्माएं रहती हैं। पितरों को मुक्ति दिलाने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यह समय विशेष होता है तथा इस मास का अंतिम दिन अमावस्या का दिन होता है।
आश्विन मास की अमावस्या को प्रमुख रूप से पितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता है lइस दिन पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। इस को पितृपक्ष की विशेष तिथि माना जाता है ऐसा बताया जाता है कि इस दिन पितृ पृथ्वी पर आते हैं तथा वो अपने वंशजों के द्वारा किए गए कर्मों का फल प्राप्त करते हैं। उनके द्वारा किए गए तर्पण तथा श्राद्ध से वे खुश होकर आशीर्वाद देते हैं l इससे उनकी आत्मा को संतुष्टि मिलती है।
पितृ अमावस्या की पौराणिक कथा:
इस अमावस्या से जुड़ी अनेक पौराणिक कथाएं हैं जोकि इस दिन के महत्व को बताती हैं। इनमें से एक विशेष कथा महाभारत के समय की बताई जाती है, जो भीष्म पितामह पे है। भीष्म पितामह वो है जिन्हें महाभारत के महान योद्धाओं में माना जाता है भीष्म पितामह ने अपने जीवन के आखरी दिनों में अर्जुन से ये कहा था कि वो पितरों को तर्पण और श्राद्ध करें जिससे कि उनके पितरों की आत्माओं को शांति प्राप्त हो। अर्जुन ने अपने भाई युधिष्ठिर से इसका कारण जानना चाहा तब युधिष्ठिर ने ऐसा बताया कि इस अमावस्या के दिन पितरों को तर्पण और श्राद्ध का बहुत महत्व होता है, और इसे करने से पितरों के मन को संतुष्टि मिलती हैं। ऐसा सुनने पर अर्जुन ने भी अपने पितरों का तर्पण किया इससे उनके परिवार को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
एक अन्य कथा के अनुसार, राजा हरिश्चंद्र ने भी इस दिन अपने पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया था। पौराणिक कथा कहती है कि राजा हरिश्चंद्र सत्यवादी और धर्म को मानने वाले राजा थे राजा ने अपने राज्य को सत्य और न्याय के साथ चलाया। एक दिन ऐसा भी आया जब उन्होंने अपने पुत्र रोहिताश्व की मृत्यु होने के बाद अपने पितरों के तर्पण के लिए अमावस्या को चुना। उन्होंने विधि के अनुसार श्राद्ध और तर्पण किया, जिससे उनके पितरों की आत्मा को शांति मिली तथा राजा हरिश्चंद्र को आशीर्वाद भी मिला।
धार्मिक विधि के अनुसार पूजा का महत्व इस प्रकार:
अमावस्या के दिन श्राद्ध और तर्पण करने की विधि प्रमुख माना जाता है। इस दिन पितरों के लिए अर्पित किए गए अन्न, जल, और तर्पण से पितरो को प्रसन्नता होती हैं। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन विधि के अनुसार श्राद्ध करता है, उस मनुष्य को पितरों का आशीर्वाद मिलता है तथा उनके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है। श्राद्ध कई विधियो के द्वारा किया जाता है जिनमें प्रमुख पिंडदान, तर्पण और पितरों को भोजन अर्पण करना सम्मिलित है।
श्राद्ध वाले दिन व्यक्ति को प्रातः स्नान करके पवित्र होकर स्वच्छ स्थान पर बैठना चाहिए l तत्पश्चात पितरों के नाम से पिंड दान किया जाता है। पिंड पर चावल, जौ, तिल और काला तिल होता है। इसे शुद्ध पानी समर के साथ मिलाकर पितरों के नाम से समर्पित किया जाता है बाद मे पितरों के नाम से तर्पण किया जाता है जिसमें कि जल और तिल को मिलने के बाद उनको अर्पित किया जाता है। इस कार्य के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा देनी चाहिए l इसके बाद में परिवार के साथ पितरों के नाम से भोजन अर्पित किया जाता है।
पितृ दोष का निवारण:
हिंदू धर्म में पितृ दोष के बारे में भी बताया जाता है। ऐसा बताया जाता है कि जब किसी मनुष्य के पितर संतुष्ट नहीं होते या उनकी आत्मा को शांति नहीं मिल पाती तो उनके वंशजों को पितृ दोष के कारण कष्ट उठाना पड़ता हैlइस पितृ दोष के कारण व्यक्ति के जीवन में अनेक प्रकार की समस्याऐ,आर्थिक तंगी, स्वास्थ्य से संबंधी परेशानि हो सकती हैं। इस दोष के निवारण के लिए अमावस्या वाले दिन श्राद्ध और तर्पण करना महत्वपूर्ण होता है।
श्राद्ध कर्म और तर्पण से पितृ दोष का निवारण होता है और व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है। पितरों की आत्माएं प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देती हैं और उनके सभी कार्य सफल होते हैं। इसलिए, आश्विन मास की अमावस्या का दिन पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने का सर्वोत्तम समय माना जाता है।
अमावस्या का विवरण आध्यात्मिक के रुप में:
आध्यात्मिक दृष्टि से अमावस्या का दिन साधना के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। हालांकि यह दिन चंद्रमा के अंधकार का होता है इसलिए इस दिन को आत्मा के अंदरुनी अंधकार को नष्ट करने और आत्मा के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए भी विशेष माना जाता है। इस दिन व्यक्ति को ध्यान साधना और जप के द्वारा अपने अंदरूनी मां को साफ करना चाहिए l इसके अतिरिक्त अमावस्या के दिन मनुष्य को दान-पुण्य करना भी बहुत विशेष माना गया है। दान करने से मनुष्य के पाप नष्ट होते है lआध्यात्मिक रूप से उन्नति की प्राप्ती होती है। इसलिए इस दिन अन्न, वस्त्र, धन का दान करना चाहिए l इस दिन को धार्मिक दृष्टि से बहुत लाभकारी माना जाता है।