शीतला अष्टमी (बासोड़ा) व्रत, कथा एवं पूजन विधि

sheetla ashtami vrat katha

हमारे हिंदू धर्म में शीतला अष्टमी की पूजा एवं व्रत करने का काफी महत्व है। माँ शीतला अष्टमी का व्रत हर साल चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन माता शीतला का व्रत और पूजा परिवार सहित की जाती है। हिन्दू धर्म मान्यता के अनुसार इस दिन विधि-विधान से माता के व्रत और पूजन करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इस व्रत को बासौड़ा के नाम से भी जाना जाता है।

शीतला अष्टमी माता पूजन विधि:

माता शीतला की पूजा करने वाले सुबह जल्दी उठकर नित्य क्रिया करने के पश्चात माता के पूजन के लिए तैयार होते है माता की पूजा के लिए रात को ही सप्तमी वाले दिन भोजन बना कर रख दिया जाता है वही भोजन प्रात: माता के पूजन में प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है यह पूजा विशेष रूप से बच्चो के लिए की जाती है ऐसा भी बताया जाता है की शीतला माता भक्तों को अनेक प्रकार की बिमारियों से बचाती है शीतला माता की पूजा करने से घर की दरिद्ता का अंत होता है एवं माता लक्ष्मी की कृपा दृष्टि बनी रहती है

शीतला अष्टमी माता की पौराणिक कथा इस प्रकार है:

एक समय की बात है एक बार शीतला माता ने सोचा की धरती पर चल कर देखती हूं कि मुझे धरती पर कौन-कौन पूजता है l यही सोच कर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डूंगरी गांव में आई और देखा कि इस गांव में मेरा मंदिर नहीं है और ना ही यहां मेंरी कोई पूजा होती है l माता धरती पर गांव की गलियों में इधर-उधर घूमने लगी l तभी किसी ने एक मकान के ऊपर से माता के ऊपर चावल का गरम-गरम पानी डाल दिया l वह उबलता पानी माता के ऊपर गिरा जिससे कि उनके शरीर पर फफोले हो गए l माता जोर जोर से चिल्लाने लगी अरे मैं जल गई मुझे कोई बचाओ माता के पूरे शरीर पर जलन हो रही थी l माता कह रही थी कोई मेरी सहायता करो l वही पास में एक कुम्हरण बैठी हुई थी l उसने देखा कि यह एक वृद्ध महिला है जिसके पूरे शरीर पर छाले पड़े हुए हैं और वह चिल्ला रही है l तब उस कुम्हरण ने कहा हे मां तू यहां आकर बैठ जा मैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा ठंडा पानी डालती हूंl कुम्हार ने उस पर खूब ठंडा पानी डाला और बोली है मां मेरे घर में रात की बनी हुई राबड़ी रखी है तू दही राबड़ी खा ले तब बुढ़िया मां ने ठंडी ज्वार के आटे से बनी हुई राबड़ी खाई lजिससे कि उनके शरीर में काफी ठंडक मिली l
तब उस कुम्हरण ने कहा आओ मां मैं तुम्हारे बाल बना देती हूं और कुम्हरण मां की चोटी बनाने लगी जैसे ही कुम्हरण ने मां के सर में हाथ डाला तो उन्होंने देखा कि एक आंख बालों के अंदर छिपी हुई है l यह देखकर कुम्हरण घबरा गई और इधर-उधर भागने लगी l तब बुढ़िया माई ने कहा रुको बेटी तू डर मत मैं कोई भूत प्रेत नहीं हूं मैं शीतला देवी हूं l मैं तो इस धरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है कौन-कौन मेरी पूजा अर्चना करता है l इतना कहकर माता ने अपना असली रूप दिखा दिया l जो की हीरे मोतियों के आभूषणों से सुशोभित था l
कुम्हरण ने माता के दर्शन किए और वो सोचने लगी कि मैं तो एक गरीब महिला हूं l मैं माता को कहां पर बिठाऊं l तब माता ने कहा की बेटी तुम किस सोच में लग गई l तब कुम्हरण ने मां से हाथ जोड़कर अपनी आंखों में आंसू भरते हुए कहां मैं तो एक गरीब महिला हूं मैं आपको कहां बिठाऊ l
तब माता शीतला उसके भोलेपन को देखकर प्रसन्न होते हुए उस कुम्हरण के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ गई और एक हाथ में झाड़ू तथा दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हरण के घर में व्याप्त दरिद्रता को झाड़ने लगी और उसे झाड़ कर डलिया में भरकर बाहर फेंक दिया l

तब उस कुम्हरण से माता से कहा हे बेटी मैं तेरी सच्ची भक्ति से बहुत अधिक खुश हूं अब तुझे जो भी कुछ चाहिए वह मुझसे तू मांग सकती है l कुम्हरण ने हाथ जोड़कर माता से कहा हे माता मेरी तो यही इच्छा है कि अब आप हमारे गांव डूंगरी में ही रह जाओ यहीं पर निवास करो और जिस प्रकार आपने मेरे घर की दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ कर दिया ऐसे ही आपको जो भी भक्त होली के पश्चात आने वाली सप्तमी को भक्ति भाव के साथ पूजा करें अष्टमी के दिन आपको ठंडा जल, दही व ठंडा भोजन चढ़ाए उसके घर की दरिद्रता को आप दूर करो l आपकी पूजा करने वाले सभी भक्त बीमारी से दूर रहे स्वस्थ रहें l महिलाओं का अखंड सुहाग रखो उनकी गोद हमेशा भरी रखना l सभी भक्त परिवार के साथ में उस दिन ठंडा बासी भोजन करें l
तब मां ने कहा तथास्तु बेटी जो तूने वरदान मांगा है मैं सब तुझे देती हूं l मां ने कहा बेटी मैं तुझे आशीर्वाद देती हूं कि मेरी पूजा का प्रमुख अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा l उस दिन से डूंगरी गांव में शीतला माता की स्थापना हो गई, और उस गांव का नाम शील की डूंगरी हो गया l

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