सूतजी बोले – वैश्य ने मंगलाचार करके यात्रा आरंभ की और अपने नगर को चला | उनके थोड़ी दूर निकलने पर दंडी वेषधारी सत्यनारायण ने उनसे पूछा – हे साधु ! तेरी नाव में क्या है ? अभिमानी वणिक हंसता हुआ बोला – हे दंडी ! आप क्यों पूछते हो ? क्या धन लेने की इच्छा है ? मेरी नाव में तो बेल और पत्ते भरे है | वैश्य का कठोर वचन सुनकर भगवान ने कहा – “तुम्हारा वचन सत्य हो |” दंडी ऐसा कहकर वहां से दूर चले गये और कुछ दूर जाकर समुद्र के किनारे बैठ गए | दंडी के जाने पर वैश्य ने नित्यक्रिया करने के बाद नाव को ऊंची उठी देखकर अचंभा किया और नाव में बेल – पत्ते आदि देखकर मूर्छित हो जमीन पर गिर पड़ा | फिर मूर्छा खुलने पर अत्यंत शोक प्रकट करने लगा |
तब उसका दामाद बोला कि आप शोक न करें, यह दंडी का श्राप है | अतः उनकी शरण में चलना चाहिए, तभी हमारी मनोकामना पूरी होगी | दामाद के वचन सुन वह दंडी के पास पहुंचा और अत्यंत भक्ति भाव से नमस्कार करके बोला – मैंने जो आपसे असत्य वचन कहे थे उनको क्षमा करो | ऐसा कहकर महान शोकातुर हो रोने लगा | तब दंडी भगवान बोले – हे वणिक पुत्र ! मेरी आज्ञा से बार-बार तुम्हें दुख प्राप्त हुआ है, तू मेरी पूजा से विमुख हुआ |
साधु बोला – हे भगवन ! आपकी माया से मोहित ब्रह्मा आदि भी आपके रूप को नहीं जानते, तब मैं अज्ञानी कैसे जान सकता हूं ? आप प्रसन्न होइये, मैं सामर्थ्य के अनुसार आपकी पूजा करूंगा, मेरी रक्षा करो और पहले के समान नौका में धन भर दो | उसके भक्तियुक्त वचन सुनकर भगवान प्रसन्न हो उसकी इच्छा अनुसार वर देकर अंतर्ध्यान हो गये| तब उन्होंने नाव पर आकर देखा की नाव धन से परिपूर्ण है फिर वह भगवान सत्यनारायण का पूजन कर साथियों सहित अपने नगर को चला | अब अपने नगर के निकट पहुंचा तब दूत को घर भेज | दूत ने साधु के घर जा उसकी स्त्री को नमस्कार कर कहा की साधु अपनी दामाद सहित इस नगर के समीप आ गए हैं | ऐसा वचन सुन साधु की स्त्री ने बड़े हर्ष के साथ सत्यदेव का पूजन कर पुत्री से कहा – मैं अपने पति के दर्शन को जाती हूं | तू कार्य पूर्ण कर शीघ्र आ |
माता के ऐसे वचन सुनकर कलावती प्रसाद छोड़कर पति के पास गई | प्रसाद की अवज्ञा के कारण सत्यदेव ने रुस्ट हो, उसके पति को नाव सहित पानी में डुबो दिया | कलावती अपने पति को न देखकर रोती हुई जमीन पर गिर गई | इस तरह नौका को डूबा हुआ तथा कन्या को रोता देख साधु दुखित हो बोला – हे प्रभु मुझसे या मेरे परिवार से जो भूल हुई है उसे क्षमा करो | उसके दिन वचन सुनकर सत्यदेव प्रसन्न हो गये और आकाशवाणी हुई है साधु ! तेरी कन्या मेरे प्रसाद को छोड़कर आई है इसलिए इसका पति अदृश्य हुआ है, यदि वह घर जाकर प्रसाद खाकर लौटे तो इसे पति अवश्य मिलेगा | ऐसी आकाशवाणी सुनकर कलावती ने घर पहुंच कर प्रसाद खाया | फिर आकर पति के दर्शन किये तत्पश्चात साधु ने बंधु – बांधवों सहित सत्यदेव का विधिपूर्वक पूजन किया | उस दिन से वह पूर्णिमा को सत्यनारायण का पूजन करने लगा | फिर इस लोक का सुख भोगकर अंत में स्वर्गलोक को गया |
|| इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा चतुर्थ अध्याय संपूर्णम ||