अनंत चतुर्दशी व्रत कथा एवं पूजन विधि

anant chaturdashi ki katha

अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है | इस व्रत की महिमा बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस व्रत को करने से मनुष्य के जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और भक्तो को सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस व्रत कथा में भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप का पूजन और उसकी महत्ता का वर्णन किया गया है।

व्रत पूजन करने की विधि

अनंत चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। पूजन के लिए पहले सफाई कर एक चौकी पर कलश की स्थापना की जाती है और उस पर अनंत (विष्णु) भगवान की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है। इसके बाद भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप का ध्यान करके, एक रेशमी धागे में 14 गाँठें बांधी जाती हैं, जिसे “अनंत सूत्र” कहते हैं। इसी अनंत सूत्र को भगवान के सामने रखकर उनकी विधिपूर्वक पूजा की जाती है। पूजा के अंत में इस अनंत सूत्र को धारण किया जाता है – पुरुष इसे अपने दाहिने हाथ में और महिलाएँ इसे अपने बाएँ हाथ में बांधती हैं। यह सूत्र भगवान अनंत का प्रतीक माना जाता है और इसे धारण करने से जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि बनी रहती है।

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा

प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक बड़ा ही विद्वान और धार्मिक ब्राह्मण था। उनकी पत्नी का नाम दीक्षा था। सुमंत और दीक्षा की एक बहुत सुंदर और गुणी कन्या थी, जिसका नाम सुशीला था। जब सुशीला की उम्र विवाह योग्य हुई, तब सुमंत ने अपनी बेटी की शादी मुनि कौण्डिन्य के साथ कर दी।

विवाह के कुछ समय बीतने के बाद, कौण्डिन्य और सुशीला एक दिन अपने घर से बाहर यात्रा के लिए निकले। रास्ते में काफी दूर चलते-चलते रात हो गई, तो उन दोनों ने एक नदी के तट पर विश्राम करने का सोचा । वहाँ उन्होंने देखा कि कई स्त्रियाँ विधिपूर्वक स्नान कर किसी देवता की पूजा कर रही थी। सुशीला को यह देखकर थोडा आश्चर्य हुआ, तो उसने उन स्त्रियों से पूछा, “आप यहाँ ये किस देवता की पूजा कर रही है और इस पूजा को करने से क्या होगा ?”

उनमें से एक महिला ने उत्तर दिया की, “हम यहाँ भगवान अनंत की पूजा कर रहे हैं। यह भगवान विष्णु का ही अनंत रूप है, जो संसार के सभी दुखों को हरते हैं और सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। इस व्रत को करने से समस्त दुखों का नाश होता है और सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है। जो भी स्त्री या पुरुष इस व्रत को विधिपूर्वक करता है, उसे कभी भी दरिद्रता, दुख, या कष्ट नहीं सताते।”

फिर सुशीला ने उस स्त्री से पूछा कि यह व्रत कैसे किया जाता है, इस व्रत को करने की सम्पूर्ण विधि मुझे बताने की कृपा करें | उस स्त्री ने सुशीला को पूरे विधि-विधान से अनंत भगवान की पूजा करने और अनंत सूत्र धारण करने की विधि बताई। सुशीला ने विधिपूर्वक अनंत भगवान की पूजा की और अनंत सूत्र धारण कर लिया।

जब सुशीला ने यह व्रत किया, तो उसने अपने पति कौण्डिन्य से भी भगवान अनंत की पूजा व्रत एवं अनंत सूत्र धारण करने का आग्रह किया। लेकिन मुनि कौण्डिन्य ने इस व्रत पूजा को अंधविश्वास मानकर ठुकरा दिया। कौण्डिन्य ने कहा, “यह सब व्यर्थ की बातें हैं। एक सूत्र धारण करने से कोई समस्या का समाधान नहीं हो सकता। हमे अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए, न कि इन धार्मिक विधियों में उलझना चाहिए।”

इस प्रकार कौण्डिन्य ने अनंत भगवान और व्रत का अनादर कर दिया। कुछ समय के बाद, कौण्डिन्य को इसका भयंकर परिणाम भुगतना पड़ा। उनके जीवन में अचानक से आर्थिक संकट आ गया, और उनके पास जो भी घर संपत्ति थी वह सभी धीरे-धीरे नष्ट हो गई। अब कौण्डिन्य और सुशीला गरीबी में जीवन बिताने लगे। बाद में कौण्डिन्य को अपने घमंड और भगवान अनंत के प्रति किए गए अपमान का एहसास हुआ।

अपनी गरीबी और कठिनाइयों से परेशान होकर मुनि कौण्डिन्य ने यह निश्चय किया कि उन्हें अपनी गलती सुधारनी चाहिए। इसलिये उन्होंने दृढ़ संकल्प किया कि वे भगवान अनंत की शरण में जाएंगे और उनसे क्षमा याचना करेंगे। कौण्डिन्य ने वन में जाकर भगवान अनंत की घोर तपस्या शुरू की। वे भगवान अनंत की आराधना करने लगे और उनसे अपनी भूल के लिए क्षमा मांगने लगे।

कई वर्षों तक कठोर तपस्या करने के बाद, भगवान अनंत ने कौण्डिन्य की भक्ति और पश्चाताप से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए। भगवान अनंत ने प्रकट होकर कहा, “हे कौण्डिन्य! तुमने अनंत सूत्र का निरादर किया था, इसलिए तुम्हें इस कष्ट का सामना करना पड़ा। अब तुम सच्चे हृदय और पूरी भक्ति भावना से मेरा व्रत करो और अनंत सूत्र धारण करो। तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जाएंगे और तुम्हें धन, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होगी।”

भगवान अनंत के दर्शन प्राप्त करने के बाद, कौण्डिन्य ने विधिपूर्वक अनंत चतुर्दशी का व्रत किया और अनंत सूत्र धारण किया। इसके साथ ही, उनके जीवन की सभी समस्याएं समाप्त हो गईं। उनकी निर्धनता और खोया हुआ धन वापस आ गया और उन्हें सुख-समृद्धि की प्राप्ति हुई। कौण्डिन्य और सुशीला दोनों ने मिलकर भगवान अनंत का गुणगान किया और उन्होंने यह प्रण लिया कि वे प्रतिवर्ष अनंत चतुर्दशी का व्रत विधिपूर्वक करेंगे। इस प्रकार भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की कृपा से उनका जीवन सुखमय हो गया।

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