फाल्गुन मास की विजया एकादशी की व्रत कथा | Falgun Maah Ki Vijaya Ekadashi Vrat Katha
एकादशी व्रत का महत्त्व क्या होता है:
ऐसी मान्यता है कि सनातन धर्म में एकादशी व्रत का बहुत महत्त्व है। हर मास दो एकादशी होती हैं—शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है। शास्त्रों में ऐसा बताया जाता है कि इस व्रत को धारण करने वाले मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती ह
विजया एकादशी का महात्म्य इस प्रकार है:
धार्मिक मान्यताओ के आधार पर विजया एकादशी का व्रत करने से सभी पाप नष्ट होते है तथा व्यक्ति को विजय प्राप्त होती है। इस व्रत का पालन करने से विष्णु भगवान की कृपा की प्राप्ति होती है, जिससे जीवन में होने वाली समस्त कठिनाइयाँ दूर हो जाती हैं। इस एकादशी को विजया एकादशी इसलिए कहा जाता है इससे व्यक्ति को हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है
विजया एकादशी व्रत कथा इस प्रकार है:
पुराणों में इस एकादशी की एक प्राचीन कथा है। त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम माता सीता को रावण से छुड़ाने के लिए लंका जा रहे थे, तब उनको समुद्र पार करने की समस्या आई l
जब श्रीराम अपनी सेना को साथ लेकर समुद्र तट पर पहुँचे,तब उन्होंने देखा कि विशाल समुद्र उनके मार्ग में बाधा बना हुआ है। इस परेशानी का समाधान करने के लिए उन्होंने तीन दिनों तक समुद्र देवता से प्रार्थना की, परंतु समुद्र देवता शांत नहीं हुए। तब विभीषण ने श्रीराम से कहा, हे प्रभु! अगर आप विजया एकादशी का व्रत करेंगे तो आपको इन कठिनाई से मुक्ति मिलगी। इस व्रत से आपको निश्चित ही विजय प्राप्त होगी।
विभीषण की बातो को सुनकर श्रीराम ने गुरु वशिष्ठ से परामर्श माँगा। वशिष्ठ मुनि ने कहा, हे राम फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को करने से न केवल समस्त पाप नष्ट होते हैं, अपितु विजय की प्राप्ति होती है। यदि आप इस व्रत को विधि से करेंगे, तो आपको निश्चित ही लंका पर विजय प्राप्त होगी l
गुरु वशिष्ठ का परामर्श मानकर श्रीराम ने विधि पूर्वक विजया एकादशी का व्रत रखा। उन्होंने पूरे दिन निराहार रहकर उपवास किया, रात में जागरण किया तथा विष्णु भगवान का ध्यान किया। अगले दिन द्वादशी तिथि को विधि से व्रत का पारण किया l
इस व्रत के प्रभाव से भगवान श्रीराम की समस्त बाधाएँ दूर हो गईं। समुद्र देवता ने स्वयं प्रकट होकर श्रीराम से क्षमा माँगी तथा कहा, “हे भगवान ! मैं आपके मार्ग में बाधा नहीं बनूँगा। आप अपनी सेना के साथ में लंका की ओर प्रस्थान कर सकते हैं l तब नल-नील के साथ में वानर सेना ने समुद्र पर रामसेतु बनाया तथा श्रीराम की सेना लंका पहुँच गई। अंत में भगवान श्रीराम ने रावण का वध करके सीता माता को मुक्त कराया तथा धर्म की स्थापना की।
विजया एकादशी व्रत की विधि इस प्रकार है:
व्रत करने वाले भगत को व्रत के पहले दिन यानी दशमी तिथि को सात्विक आहार लेना चाहिए l
मन, वाणी तथा कर्म को शुद्ध रखना चाहिए l
एकादशी वाले दिन प्रातः स्नान करके साफ सुथरे कपड़े धारण करने चाहिए, तथा भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए l
“ओम नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करते हुए व्रत की शुरुआत करनी चाहिए
श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करना चाहिए
एकादशी के व्रत में पूरे दिन निराहार रहना चाहिए तथा इस दिन अन्य का त्याग करना चाहिए
रात्रि को जागरण अवश्य करेंl
द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उन्हें दान दक्षिणा देनी चाहिए
तत्पश्चात स्वयं भोजन ग्रहण करके व्रत का पारण करना चाहिए l