जलझूलनी एकादशी कथा

jaljhulni ekadashi katha

जलझूलनी एकादशी हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस एकादशी को भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी के रूप मे मनाया जाता है । इस एकादशी को विभिन्न नामो से जाना जाता है जैसे परिवर्तिनी एकादशी, वामन एकादशी, पद्मा एकादशी। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा कर उन का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

जलझूलनी एकादशी की कथा:-

त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। वह भगवान विष्णु का अत्यंत भक्त था ।वह नित्य ही ब्राह्मणों का पूजन तथा यज्ञ का आयोजन किया करता था। इंद्र से द्वेष के कारण उसने इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया था ।इस कारणवश सभी देवता इकठ्ठे होकर भगवान विष्णु के पास गये और उनसे सहायता करने को कहा।
भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण करके , राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। वामन रूप में भगवान विष्णु ने दो पग में त्रैलोक्य को नाप लिया और तीसरे पग के लिए बलि को अपने सिर पर पैर रखने को कहा। बलि ने भगवान विष्णु कहा मैं आपके चरणों में अर्पित हु। इस प्रकार भगवान श्री हरि ने देवताओं को स्वर्ग पर पुनः अधिकार दिलवा दिया। तभी से इस एकादशी को बहुत महत्वपूर्ण एकादशी माना जाता है।
माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से मनुष्य सभी पापों से छुट जाता हैं , उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है ,क्योंकि ऐसा बताया जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी शेषशैया पर करवट बदलते हैं।

जलझूलनी एकादशी का महत्व:-

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है ,और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु अपनी शेषशैया पर करवट बदलते है।

जलझूलनी एकादशी की कथा और व्रत विधि का पालन करने से भक्त भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करता हैं ,और अपने जीवन को भक्तिमय करके सुखदायक बनाता है।

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