हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत महत्वपूर्ण व्रतो में से एक व्रत है। इस व्रत को प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। त्रयोदशी तिथि को होने वाला यह व्रत प्रमुख रूप से भगवान शिव को समर्पित होता है। इस प्रदोष व्रत का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव की आराधना करके उनका आशीर्वाद लेना होता है, जिससे कि जीवन मे होने वाले कष्टों से मुक्ति मिलती है तथा सुख-समृद्धि कि प्राप्ति होती है। कार्तिक मास में इस व्रत को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है,क्योंकि कार्तिक माह में भगवान शिव की पूजा अर्चना का बहुत महत्व है।
कार्तिक मास के प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा:-
बहुत समय पहले एक नगर में निर्धन ब्राह्मण रहता था, जिसके जीवन में बहुत कठिनाईया तथा कष्ट थे। वह ब्राह्मण बहुत धर्मपरायण तथा भगवान शिव का बहुत भक्त था। उसे ब्राह्मण में भगवान शिव के प्रति अटूट श्रद्धा थी।भगवान की इतनी पूजा अर्चना करने के पश्चात भी उसको अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों से मुक्ति नहीं मिल रही थी।
एक दिन ब्राह्मण ने यह है निश्चय किया कि वह भगवान शिव की उपासना करेगा।उसने यह संकल्प लिया कि वह प्रत्येक महीने मे आने वाले प्रदोष व्रत को करेगा।उसकी इस प्रकार से भक्ति और श्रद्धा को देखकर भगवान शिव उससे अत्यधिक खुश हो गए। भगवान शिव ने उस ब्राह्मण की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक साधु का रूप धारण किया तथा उसके पास पहुंचे।
भगवान शिव रूपी साधु ने ब्राह्मण से कहा, ब्राह्मण तुम इतने कष्ट से गुजर रहे हो, फिर भी तुम भगवान शिव की इतनी श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना कैसे कर रहे हो। वृद्ध साधु ने कहा कि मैं जो तुम्हें कहूंगा तुम उसे मानोगे क्या? साधु की बातों को सुनकर उस ब्राह्मण ने विनम्रता पूर्वक कहा, हे महानुभाव मैं आपकी आज्ञा का पालन अवश्य करूंगा।
साधु ने ब्राह्मण से कहा तुमहे मेरे बताए अनुसार एक कार्य करना होगा। यही पास के गांव में एक साहूकार रहता है, जोकि बहुत धनवान व्यक्ति है। तुमको उसके पास जाना होगा तथा उससे एक दान करने का अनुरोध करना होगा। जिससे कि तुम्हारी कठिनाइयां अवश्य दूर हो जाएंगी। ब्राह्मण ने साधु के बताए अनुसार साहूकार के पास जाकर उससे मदद मांगी।
साहूकार ने ब्राह्मण की ऐसी स्थिति को देखकर उसे कुछ धन दे दिया तथा उससे कहा कि वह इसका सदुपयोग अपने परिवार की भलाई के लिए ही करे। ब्राह्मण ने उस धन के द्वारा अपने जीवन में होने वाली कठिनाइयों को दूर कर लिया तथा भगवान शिव की भक्ति में और पूर्णतय लिन हो गया। ब्राह्मण की श्रद्धा तथा भक्ति से भगवान शिव ने उसको आशीर्वाद दिया तथा उसके जीवन में सुख तथा समृद्धि का आगमन हो गया।
इस कथा के आधार से बताया गया है कि जो व्यक्ति भगवान शिव की श्रद्धा तथा विश्वास के साथ पूजा अर्चना करता है, उसकी समस्त समस्याएं अवश्य दूर हो जाती हैं। समय कैसा भी हो, भगवान शिव अपने भक्तों की सहायता करते हैं।
प्रदोष व्रत की विधि इस प्रकार है:
प्रदोष के व्रत को पालन करने के लिए प्रातः जल्दी उठकर स्नान करना होता है तथा साफ़ कपड़े पहन कर भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए। प्रदोष के व्रत का संकल्प लेना चाहिए तथा पूरे दिन निराहार रहकर व्रत को धारण करना चाहिए। शाम के समय सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष काल के समय भगवान शिव का पूजन करना चाहिए। इस समय में शिवलिंग पे जल, बेलपत्र, धतूरा, दूध, तथा फूल अर्पित करना चाहिए ।
प्रदोष के व्रत के पूजन में शिव चालीसा, शिव स्तोत्र तथा महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करना भी बहुत अच्छा बताया जाता हैI पूजन के पश्चात भगवान शिव की आरती करनी चाहिएI अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन करवा कर तथा कुछ दान देकर अपने व्रत का पारन करना चाहिए I