पापमोचनी एकादशी व्रत कथा, विधि एवं महत्व

papmochani ekadashi vrat katha

युधिष्ठिर महाराज ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा हे केशव ! कृपा कर आप मुझे चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली पापमोचनी एकादशी के विषय में बताएं |
यह सुनकर कृष्ण ने कहा – हे युधिष्ठिर ! पापमोचनी एकादशी के इस व्रत को करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश हो जाता है l व्यक्ति अष्ट सिद्धियां को पा लेता है l

एकादशी व्रत का महत्व :

एकादशी व्रत को हिंदू धर्म में पुण्यदायी तथा मोक्षदायक बताया गया है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को “पापमोचनी एकादशी” कहा जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्य अपने पापों से मुक्त होकर परमधाम को जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना तथा उपवास करने से सभी पाप समाप्त होते है।

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा इस प्रकार है:

प्राचीन समय में चित्ररथ नाम का एक सुंदर वन था l वहां देवराज इंद्र के अनेक अप्सराएँ, गंधर्व, देवता तथा ऋषि-मुनि रहते थे। उसी वन में मेधावी नाम के एक महर्षि तपस्या में लीन थे। उनका तेज तथा तपबल इतना ज्यादा था कि स्वर्गलोक तक इसका प्रभाव पहुँच रहा था। जब इंद्र को पता हुआ कि महर्षि मेधावी की तपस्या स्वर्ग पर भारी पड़ सकती है, तो उन्होंने उनकी तपस्या भंग करने के लिए सुंदर अप्सरा “मंजुघोषा” को भेजा। मंजुघोषा ने अपने अद्भुत रूप तथा मोहक नृत्य से महर्षि को रिझाने का प्रयत्न किया। पहले तो महर्षि ने उसकी तरफ़ ध्यान नहीं दिया, लेकिन धीरे-धीरे वे उसकी सुंदरता तथा मधुर वाणी से आकर्षित होने लगे। तपस्या में लीन महर्षि मंजुघोषा के प्रेमजाल में फँस गए तथा कई वर्षों तक उसके साथ रमण करते रहे।

कई वर्षों के बाद जब मंजुघोषा ने विदा लेने को सोचा, तो महर्षि को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने देखा कि वे अपनी तपस्या तथा ब्रह्मचर्य व्रत से विमुख हो गए थे। इस अहसास से वो बहुत क्रोधित हुए तथा उन्होंने मंजुघोषा को श्राप दिया l उन्होंने कहा”हे दुष्टा! तूने मुझे धर्म से दूर किया है, इस कारण से मैं तुझे पिशाचिनी होने का श्राप देता हूँ। मंजुघोषा घबरा गई तथा उसने महर्षि से क्षमा माँगने। तभी महर्षि को अपनी गलती का अहसास हुआ तथा उन्होंने उसे पाप से छुटकारा पाने का उपाय बताया l

चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी का उपवास करने से सभी पापों का नाश होता है। महर्षि ने कहा यदि तू इस व्रत को विधिपूर्वक करेगी, तो पिशाच की योनि से मुक्त हो जाएगी तथा तुझे दोबारा स्वर्ग की प्राप्ति होगी l मंजुघोषा ने पूर्ण भक्ति से इस व्रत को किया। उसके व्रत के प्रभाव से वह अपने पिशाच योनि से मुक्त हो गई और पुनः अप्सरा के रूप में स्वर्गलोक चली गई। महर्षि मेधावी को भी अपने किए पर बहुत पश्चात्ताप हुए तथा उन्होंने भी इस व्रत का पालन किया तथा वो भी अपने समस्त दोषों से मुक्त हुए तथा उन्होंने मोक्ष को प्राप्त किया।

पापमोचनी एकादशी व्रत विधि इस प्रकार हैं:

  • व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी तिथि को सात्त्विक भोजन करें।
  • एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।
  • भगवान विष्णु का पूजन करें और व्रत का संकल्प लें।
  • पूरे दिन फलाहार करें तथा जल या दूध का सेवन करें।
  • भगवान विष्णु के मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” का जाप करें l
  • रात्रि जागरण करें तथा भजन-कीर्तन करते हुए समय व्यतीत करें।
  • द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें कुछ दान देकर व्रत का पारण करें।

पापमोचनी एकादशी का व्रत व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से आगे बढ़ाने वाला होता है तथा पापों से मुक्ति दिलाने वाला होता है। जो कोई भी भक्त इसे श्रद्धा तथा नियम के अनुसार करता है वह मोक्ष प्राप्त करता है।

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