गुरुवार का व्रत बड़ा ही फलदाई व्रत होता है। बृहस्पतिवार के दिन श्री हरी विष्णु की पूजा का विधान है। गुरुवार के व्रत मे बृहस्पति देव के रूप में केले के पेड़ की पूजा की जाती है।
बृहस्पतिवार व्रत कथा:-
भारतवर्ष में एक प्रतापी और दानी राजा राज्य करता था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता किया करता था। यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी, वह न तो एक पैसा भी गरीबों को दान देती थी, और न ही भगवान की पूजा किया करती थी। रानी राजा को भी ऐसा करने से मना किया करती थी। एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे, रानी महल में अकेली थी उसी समय बृहस्पति देव साधु के वेश में राजा के महल में भिक्षा के लिए गए और भिक्षा मांगी। रानी ने भिक्षा देने से इनकार कर दिया और कहां हे साधु महाराज! मैं तो इस दान पुण्य से तंग आ चुकी हूं। दान पुण्य करने के लिए मेरे पतिदेव ही बहुत हैं। मेरे पति सारा धन लूटाते रहते हैं। मेरी इच्छा यह है कि हमारा सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं।
साधु ने कहा देवी तुम बड़ी ही विचित्र हो धन और संतान तो सभी चाहते हैं। इससे कोई दुखी नही होता। यदि तुम्हारे पास अधिक धन है, तो तुम भूखे लोगों को भोजन करवाओ, प्याऊ बनवाओ, मुसाफिरों के लिए धर्मशालाएं खुलवाओ, निर्धनों की कुंवारी कन्याओं का विवाह करवाओ ऐसा काम करने से तुम्हारा यश लोक परलोक में फैलेगा। परंतु रानी को यह बात अच्छी नहीं लगी वह बोली महाराज आप मुझे कुछ नहीं समझाइए। मैं ऐसा धन नहीं चाहती जो हर जगह संभालती फिरू।
साधु ने कहा यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो जैसा मैं बताता हूं वैसा करना। बृहस्पतिवार को घर मिट्टी से लीपना, अपने सर को धोकर स्नान करना, कपड़े धोबी के यहां धुलने देना, अपने पति से कहना हजामत करवाए। ऐसा करने से आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा इतना कहकर वह साधु महाराज वहां से चले गए। साधु के बताएं अनुसार करते हुए रानी को केवल तीन ही बृहस्पतिवार व्यथित हुए थे कि, उसकी समस्त धन संपत्ति नष्ट हो गई। भोजन के लिए राजा वह उसका परिवार तरसने लगा। तब एक दिन राजा ने रानी से कहा कि रानी तुम यहाँ रहो, मैं दूसरे देश को जाता हूं क्योंकि यहां पर सभी लोग मुझे जानते हैं इसीलिए मैं कोई काम धंधा नहीं कर सकता। ऐसा कहकर राजा प्रदेश चला गया वहां वह जंगल से लकड़ी काट कर लाता और शहर में बेचता। इस तरह से अपना जीवन व्यतीत करने लगा। इधर राजा के परदेश जाते ही रानी और दासी दुखी रहने लगी।
एक बार जब रानी और दासी को सात दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने दासी से कहा दासी पास ही नगर में मेरी बहन रहती है। वह बड़ी ही धनवान है, तू उसके पास जा और कुछ ले आ ताकि थोड़ा बहुत गुजारा हो जाए। दासी रानी की बहन के पास गई। उस दिन गुरुवार था, और रानी की बहन उस समय बृहस्पतिवार व्रत कथा सुन रही थी। दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया। दासी को रानी की बहन से कोई उत्तर नहीं मिला तो, वह बहुत दुखी हुई और उसे क्रोध भी आया। दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी। सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा उधर रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी, परंतु मैं उससे नहीं बोली इससे वह बहुत दुखी हुई होगी। कथा सुनकर और पूजा समाप्त करके वह अपनी बहन के घर आई और कहने लगी बहन मैं बृहस्पतिवार की कथा कर रही थी।तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी, परंतु जब तक कथा होती है तब तक न तो उठते हैं और न हीं बोलते हैं, इसीलिए मैं नहीं बोली कहो दासी क्यों गई थी। रानी बोली बहन तुमसे क्या छुपाऊं, हमारे घर खाने तक को अनाज नहीं था । ऐसा कहते हुए रानी की आंखें भर आई उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने तक की बात अपनी बहन को बता दी ।
रानी की बहन बोली देखो बहन भगवान बृहस्पति देव सब की मनोकामना पूर्ण करते हैं देखो शायद तुम्हारे घर में भी अनाज रखा हो। पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ पर बहन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो वहाँ सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया। यह देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई क्योंकि दासी ने एक-एक बर्तन देख लिया था। तब दासी रानी से कहने लगी हे रानी! जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम हर रोज ही व्रत करते हैं, इसीलिए क्यों न इन से व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाए, ताकि हम भी व्रत कर सके। जब रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार के बारे में पूछा तो उसकी बहन ने बताया बृहस्पतिवार के दिन चने की दाल और मुनक्का से भगवान विष्णु का केले की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलाएं व्रत कथा सुने और पीला भोजन ही करें। इससे बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं। व्रत और पूजन की विधि बता कर रानी की बहन अपने घर को लौट गई। सात दिन बाद जब बृहस्पतिवार आया तो ,रानी और दासी ने व्रत रखा। घुडसाल में जाकर चना और गुड बिन लाई फिर उसने केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया। पीला भोजन कहां से आए इस बात को लेकर दोनों बहुत दुखी थी, क्योंकि उन्होंने व्रत रखा था इसीलिए बृहस्पति देव उनसे प्रसन्न थे। वे एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण करके दो थालों में सुंदर पीला भोजन दासी को दे गई भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया। उसके बाद वे सभी गुरुवार का व्रत और पूजन करने लगी ।
बृहस्पति भगवान की कृपा से उनके पास फिर से धन संपत्ति आ गई, परंतु रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करने लगी, तब दासी बोली देखो रानी तुम पहले भी इसी तरह आलस करती थी।तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था इस कारण सभी धन नष्ट हो गया था। अब जब भगवान बृहस्पति जी की कृपा से धन मिला है तो आप फिर से आलस करने लगी हो। रानी को समझाते हुए दासी कहने लगी की बड़ी मुश्किल के बाद हमने यह धन पाया इसीलिए हमें दान पुण्य करना चाहिए, भूखे मनुष्य को भोजन करवाना चाहिए और धन को शुभ कार्य में खर्च करना चाहिए। जिससे तुम्हारा कुल का यश बढ़ेगा स्वर्ग की प्राप्ति होगी और पितर प्रसन्न होंगे। दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी। जिससे पूरे नगर में उनका यश फैलने लगा। एक दिन राजा दुखी होकर जंगल में एक पेड़ के नीचे आसन जमा कर बैठा था। वह अपनी दशा को याद करके व्याकुल होने लगा ।बृहस्पतिवार का दिन था एका एक उसने देखा कि निर्जन वन में एक साधु प्रकट हुआ वह साधु वेश में स्वयं बृहस्पति देवता थे ।लकड़हारे के सामने आकर बोले हे लकड़हारा! इस सुनसान जंगल में तू चिंता मग्न क्यों बैठा है। लकड़हारे ने दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम किया और उत्तर दिया महात्मा जी आप सब कुछ जानते हैं। मैं क्या कहूं ऐसा कहकर रोने लगा और साधु को अपनी आत्मकथा सुनाई। महात्मा जी ने कहा तुम्हारी स्त्री ने बृहस्पतिवार के दिन बृहस्पति भगवान का अपमान किया है । जिसके कारण रुष्ट होकर उन्होंने तुम्हारी यह दशा की है । अब तुम चिंता को दूर करके मेरे कहने पर चलो तो तुम्हारे सब कष्ट दूर हो जाएंगे और भगवान पहले से भी अधिक धन संपत्ति देंगे। तुम बृहस्पतिवार के दिन कथा किया करो दो पैसे के चने, मुनक्का लाकर उसका प्रसाद बना और शुद्ध जल से लोटे में शक्कर मिलाकर अमृत तैयार करो। कथा के पश्चात अपने सारे परिवार और सुनने वाले प्रेमियों में अमृत व प्रसाद बाँटकर आप भी ग्रहण करो ऐसा करने से भगवान तुम्हारी सभी मनोकामना पूरी करेंगे । साधु के ऐसे वचन सुनकर लकड़हारा बोला हे प्रभु मुझे लकड़ी बेचकर इतना पैसा नहीं मिलता। जिससे भोजन के उपरांत कुछ पैसा बचा सकूं। मैने रात्रि में अपनी स्त्री को व्याकुल देखा है। मेरे पास कुछ भी नहीं, जिससे मैं उसकी खबर ले सकूं।
साधु ने कहा हे लकड़हारा! तुम किसी बात की चिंता मत करो बृहस्पतिवार के दिन तुम रोजाना की तरह लड़कियां लेकर शहर को जाओ। तुमको रोज से दुगना धन प्राप्त होगा जिससे तुम भली भांति भोजन कर लोगे तथा बृहस्पति देव की पूजा का सामान भी ले सकोगे। इतना कहकर साधु अंतर्ध्यान हो गए। धीरे-धीरे समय व्यतीत होने पर फिर वही बृहस्पतिवार का दिन आया। लकड़हारा जंगल से लकड़ी काटकर किसी शहर में बेचने गया। उस दिन और दिन से अधिक पैसा मिला। राजा ने चना गुड़ आदि लाकर गुरुवार का व्रत किया। उस दिन से उसके सभी क्लेश दूर हो गई परंतु, जब दूसरा गुरुवार आया तो बृहस्पतिवार का व्रत करना भूल गया। इस कारण बृहस्पति देव भगवान नाराज हो गए। उस दिन उस नगर के राजा ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया तथा शहर में यह घोषणा करवा दी कि कोई भी मनुष्य अपने घर में भोजन न बनाए। समस्त जनता मेरे यहां भोजन करने आवे। इस बात को जो न मानेगा उसे फांसी की सजा दी जाएगी। इस तरह की घोषणा संपूर्ण नगर में करवा दी गई। राजा के कहे अनुसार शहर के सभी लोग राजा के यहाँ भोजन करने लगे। लेकिन लकड़हारा कुछ देरी से पहुंचा, इसलिए राजा उसको अपने साथ घर ले आए। लकड़हारा जब भोजन कर रहा था, तो रानी की दृष्टि उस खुटी पर पड़ी जिस पर उसका हार टंगा हुआ था। वह वहां पर दिखाई नहीं दिया तो रानी ने निश्चय किया कि मेरा हार इस मनुष्य ने चुरा लिया है। रानी ने उसी समय सिपाहियों को बुलाकर उसको कारागार में डलवा दिया। जब लकड़हारा कारागार में पड़ गया और बहुत दुखी होकर विचार करने लगा की न जाने कौन से पूर्व जन्म की कारण से मुझे यह दुख प्राप्त हुआ है ।और उस साधु को याद करने लगा जो की जंगल में मिला था। उसी समय तत्काल बृहस्पति देव साधु के रूप में प्रकट हुए और उसकी दशा देखकर कहने लगे, अरे मूर्ख तूने बृहस्पति देव की कथा नहीं करी इस कारण तुझे दुख प्राप्त हुआ है। अब चिंता मत कर बृहस्पतिवार के दिन कारागार के दरवाजे पर चार पैसे पड़े मिलेंगे, उससे तू बृहस्पति देव की पूजा करना तेरे सभी कष्ट दूर हो जाएंगे । बृहस्पतिवार के दिन उसे चार पैसे मिले। लकड़हारे ने बृहस्पतिवार की कथा की। उसी रात्रि को बृहस्पति देव ने उस नगर की राजा को स्वप्न में कहा हे राजन! तुमने जिस आदमी को कारागार में बंद कर दिया है। वह निर्दोष है वह राजा है उसे छोड़ दो रानी का हार उसी खुटी पर टंगा है, अगर तू ऐसा नहीं करेगा तो मैं तेरे राज्य को नष्ट कर दूंगा। इस तरह रात्रि को स्वप्न को देखकर राजा प्रातः काल उठा और खूंटी पर हार देकर लकड़हारे को बुलाकर क्षमा मांगी और लकड़हारे के योग्य सुंदर वस्त्र ,आभूषण देकर विदा कर दिया।
बृहस्पति देव की आज्ञा अनुसार लकड़हारा अपनी नगर को चल दिया। राजा जब अपने नगर के निकट पहुंचा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। नगर में पहले से अधिक बाग तालाब तथा धर्मशालाएं मंदिर आदि बन गए थे। राजा ने पूछा यह किसने बनवाए हैं। तब नगर के सब लोग कहने लगे, यह सब रानी और दासी ने बनवाए हैं, तो राजा को आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया। जब रानी ने यह खबर सुनी की राजा आ रहे हैं तो, उसने दासी को कहा कि देख राजा हमको कितनी बुरी हालत में छोड़कर गए थे। हमारी ऐसी हालत देखकर वो वापस ना लौट जाएं इसीलिए तू दरवाजे पर खड़ी हो जा। आज्ञा अनुसार दासी दरवाजे पर खड़ी हो गई राजा आए तो उन्हें अपने साथ ले आई। तब राजा ने क्रोध करके अपनी रानी से पूछा कि यह धन तुम्हें कैसे प्राप्त हुआ है तब उन्होंने कहा हमें यह सब धन बृहस्पति देव के व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ है। राजा ने निश्चय किया सात रोज बाद तो सभी बृहस्पति देव का पूजन करते हैं, परंतु मैं प्रतिदिन दिन में तीन बार कहानी तथा रोज व्रत किया करूंगा। अब हर समय राजा के दुपट्टे में चने की दाल बंधी रहती तथा दिन में तीन बार कथा कहता। एक रोज राजा ने विचार किया कि चलो अपनी बहन के यहां हो आते है। इस तरह निश्चय कर राजा घोड़े पर सवार हो अपनी बहन के यहां चलने लगा। मार्ग में उसने देखा कुछ आदमी एक मुर्दे को ले जा रहे हैं ।उन्हें रोकर राजा ने कहा अरे भाइयों मेरी बृहस्पति देव की कथा सुन लो। वे बोले हमारा तो आदमी मर गया इसको अपनी कथा की पड़ी है, परंतु कुछ आदमी बोले अच्छा कहो हम तुम्हारी कथा सुनेंगे। राजा ने दाल निकाली और कथा कहना शुरू किया जब कथा आदी हुई, की मुर्दा हिलने लगा और जब कथा समाप्त हो गई तो राम-राम का कर उठकर खड़ा गया। आगे मार्ग में उसे एक किसान खेत में हल चलाता मिला राजा ने देखा और उससे बोला अरे भाई तुम मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन लो ,किसान बोला जब तक मैं तेरी कथा सुनुगा, तब तक चार हरिया जोत लूंगा जा अपनी कथा किसी और को सुनाना। इस तरह राजा आगे चलने लगा। राजा के हटते ही बल पछाड़ खाकर गिर गया तथा किसान के पेट में बड़ी जोर से दर्द होने लगा। उसी समय उसकी मां रोटी लेकर आई उसने जब यह देखा तो अपने पुत्र से सब हाल पूछा और बेटे ने सभी हाल कह दिया तो, बुढ़िया दौड़ी दौड़ी उस घुड़समन के पास गई और उससे बोली कि मैं तेरी कथा सुनूंगी तू अपनी कथा मेरे खेत में चलकर कहना ।
राजा ने बुढ़िया के खेत में जाकर कथा कही, जिसके सुनते ही बैल उठ खड़े हो गए तथा किसान के पेट का दर्द भी ठीक हो गया ।राजा अपनी बहन के घर पहुंचा। बहन ने भाई की खूब मेहरबानी की। दूसरे दिन जब राजा जगा तो राजा देखने लगा कि सब लोग भोजन कर रहे थे ।राजा ने अपनी बहन से पूछा यहां कोई ऐसा मनुष्य है जिसने भोजन नहीं किया हो ,जो मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन ले। बहन बोली कि भैया यह देश ऐसा ही है पहले यहां लोग भोजन करते हैं बाद में अन्य कार्य करते हैं। बहन ने कहा अगर कोई पड़ोस में हो तो मैं देख आती हूं , ऐसा कहकर वह देखने चली गई परंतु उसे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिसने भोजन न किया हो ,अतः वह एक कुम्हार के घर गई जिसका लड़का बीमार था उसे मालूम हुआ कि यहां तीन दिन से किसी ने भोजन नहीं किया है। राजा कि बहन ने अपने भाई की कथा सुनने के लिए कुम्हार से कहा तो मैं तैयार हो गया ।राजा ने जाकर बृहस्पतिवार की कथा सुनाइ , जिसे सुनकर उसका लड़का ठीक हो गया ।अब तो राजा कि प्रशंसा होने लगी। एक दिन राजा ने अपनी बहन से कहा कि बहन हम अपने घर को जाएंगे तुम भी तैयार हो जाओ ।राजा की बहन ने अपनी सास से पूछा सास ने कहा चली जा परंतु अपने लड़के को लेकर मत जाना क्योंकि तेरे भाई के यहां कोई औलाद नहीं है। बहन ने अपने भैया को से कहा भैया मैं तो चलूंगी परंतु ,कोई बालक नहीं चलेगा। राजा बोला जब कोई बालक ही नहीं चलेगा तो तुम जाकर क्या करोगी ।बड़े दुखी मन से राजा अपनी नगर को लौट आया । राजा ने अपनी रानी से कहा हम निर्वंशी हैं हमारा मुंह देखने का धर्म नहीं है और कुछ भोजन आदि नहीं किया ।
रानी बोली हे प्रभु बृहस्पति देव ने हमें सब कुछ दिया है वह हमें औलाद भी अवश्य देंगे ।उसी रात बृहस्पति देव ने राजा को स्वप्न में कहे राजा उठ सभी सोच त्याग दे तेरी रानी गर्भवती है । राजा को यह बात सुनकर बड़ी खुशी हुई ।नवे महीने में रानी की गर्भ से एक सुंदर पुत्र पैदा हुआ ।तब राजा बोला रानी स्त्री बिना भोजन के रह सकती है ,पर बिना कहे नहीं रह सकती ।जब मेरी बहन आवे तो तुम उससे कुछ मत कहना ।रानी सुनकर हां कह दिया ।जब राजा की बहन ने यह शुभ समाचार सुना तो वह बहुत खुश हुई और बधाई लेकर अपने भाई के यहां आई ।तभी रानी ने कहा घोड़ा चढ़कर तो नहीं आई गधा चढ़ी आई ।रानी की बहन बोली भाभी मैं इस प्रकार से नहीं रहती तो तुम्हें औलाद कैसे होती। बृहस्पति देव ऐसे ही है , जिनके मन में जो कामनाएं होती हैं ,वो सभी को पूर्ण करते हैं ।जो सदभावना पूर्वक बृहस्पतिवार का व्रत करता है एवं कथा पढ़ता है अथवा सुनता है दूसरों को सुनता है बृहस्पति देव उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं। भगवान बृहस्पति देव उसकी सदैव रक्षा करते हैं । भगवान बृहस्पति देव उसकी सदैव रक्षा करते हैं ।संसार में जो मनुष्य सद्भावना से भगवान की पूजा सच्चे हृदय से करते हैं उनकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं। जैसे सच्ची भावना से रानी और राजा ने उनकी कथा का गुणगान किया तो उनकी सभी इच्छाएं बृहस्पति देव ने पूर्ण की ।इसीलिए पूर्ण कथा सुनने के बाद प्रसाद लेकर जाना चाहिए हृदय से उनका मनन करते हुए जय जयकार बोलना चाहिए ।