हिंदू धर्म में श्री महालक्ष्मी जी के व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत माता लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त करने के लिए समर्पित है और इसे करने से उनकी विशेष कृपा दृष्टि बनी रहती है। इस व्रत के दौरान कथा कहने या मात्र सुनने से सभी मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। इस व्रत को करने से व्यक्ति को धन, धान्य, आयु, पुत्र, कीर्ति एवं यश की प्राप्ति होती है। जो भी स्त्रियाँ इस व्रत को विधिपूर्वक एवं पूरी श्रदा के साथ करती हैं, उनके घर में माता लक्ष्मी सदा निवास करती हैं और उनके परिवार में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है।
श्री महालक्ष्मी की व्रत कथा
बहुत पुराने समय की बात है एक गाँव में एक बहुत गरीब ब्राह्मण अपने परिवार सहित रहता था। वह ब्राह्मण हर रोज नियम से भगवान विष्णु की पूजा किया करता था। उसकी पूजा एवं भक्ति भाव से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिए और ब्राह्मण से उसकी इच्छा के अनुसार वरदान देने का वचन दिया। यह सुन ब्राह्मण ने कहा भगवन मैं बहुत गरीब हूँ आप मेरे घर में माता लक्ष्मी का वास होने का वरदान प्रदान करें। ब्राह्मण से ऐसा सुनने पर भगवान विष्णु ने कहा, यहाँ मंदिर में हर रोज एक स्त्री आती है और वह यहाँ पर गोबर के बनाये हुए उपले थापती है। वही साक्षात् माता लक्ष्मी हैं, तुम उन्हें अपने घर में आमंत्रित करो। माता लक्ष्मी के चरण तुम्हारे घर में पड़ने से तुम्हारा घर धन-धान्य से भर जाएगा और तुम्हारी गरीबी हमेशा के लिए दूर हो जाएगी। ऐसा कहकर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए।
दूसरे दिन ब्राह्मण सुबह से ही मंदिर के बाहर माता लक्ष्मी के इंतजार में बैठ गया। जब माता लक्ष्मी आई और जब उसने माता लक्ष्मी जी को गोबर के बनाये हुए उपले थापते हुए देखा, तो उसने उन्हें अपने घर पर पधारने के लिए आमंत्रित किया। ब्राह्मण की बात सुनकर माता लक्ष्मी की समझ में आ गया कि मेरे यहाँ आने की बात इस ब्राह्मण को विष्णुजी ने ही कही है, तो उन्होंने ब्राह्मण को कहा की पहले वो श्री महालक्ष्मी जी के व्रत को करे और ब्राह्मण से कहा की तुम 16 दिनों तक श्री महालक्ष्मी जी का व्रत करो और व्रत के आखिरी दिन चंद्रमा का पूजन करके अर्ध्य दो इससे तुम्हारा व्रत पूर्ण हो जाएगा। पुरे 16 दिनों के बाद, जब व्रत का समापन हुआ, तो श्री महालक्ष्मी जी प्रकट हुई और ब्राह्मण से कहा की अब तुम्हारी गरीबी और सभी दुख समाप्त हो जाएगा। उसी दिन से यह व्रत पूरी श्रदा एवं भक्ति के साथ किया जाता है।
श्री महालक्ष्मी की दूसरी कथा
महाभारत काल के समय में महर्षि वेदव्यास जी से महाराज धृतराष्ट्र और महारानी गांधारी, कुंती ने पूछा की हे मुनि श्रेष्ठ हमारे राज्य में किस प्रकार माता लक्ष्मी धन एवं सुख समृद्धि लेकर आ सकती है। उनकी बात सुनकर मुनि वेदव्यास जी ने कहा की इसके लिए आप महालक्ष्मी जी का व्रत करें। यह सुनकर उन्होंने महालक्ष्मी व्रत का संकल्प लिया और हस्तिनापुर राज्य में महालक्ष्मी व्रत के दिन महारानी गांधारी ने नगर की सभी महिलाओं को पूजा करने के लिए आमंत्रित किया, परंतु उन्होंने रानी कुंती को पूजा के लिए आमंत्रण नहीं दिया। इससे कुंती मन ही मन उदास हो गयी।
गांधारी के सभी 100 पुत्रों ने महालक्ष्मी पूजन के लिए अपनी माता को मिट्टी लाकर दी और इस मिट्टी से एक बहुत विशाल हाथी का निर्माण कराया गया और उसे महल के बीच में स्थापित किया गया। जब नगर की सारी महिलाये पूजा करने के लिए जाने लगी, तो कुंती उदास हो गई। अपनी माँ को उदास देखकर जब कुंती के पुत्रों ने उनकी उदासी का कारण पूछा, तो उन्होंने सारी बात बताई। इस पर अर्जुन ने कहा की माता आप महालक्ष्मी पूजन की तैयारी कीजिए, मैं आपके लिए हाथी लेकर आता हूँ। ऐसा कहकर अर्जुन इंद्रदेव के पास गए और अपनी माता के पूजन के लिए ऐरावत हाथी को लेकर आए।
जब हस्तिनापुर राज्य की महिलाओ को पता चला की कुंती के महल में इंद्रदेव का ऐरावत हाथी आया है तो पुरे राज्य में शोर मच गया और हाथी को देखने के लिए सभी इक्कठे हो गये। इसके पश्चात कुंती ने सभी महिलाओ के साथ पूरे विधि-विधान से महालक्ष्मी का पूजन किया।